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१११. समितिकी लड़ाई

दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिने फिर कानून सम्बन्धी लड़ाई शुरू की है और इसमें कोई शक नहीं कि वह सार्वजनिक सभाका फल है। श्री चचिलने श्री रॉबर्टको जवाब देते हुए कहा है कि बड़ी सरकार मानती है, यह मामला बहुत ही गम्भीर हो गया है। बड़ी सरकारने लॉर्ड सेल्बोर्नसे हमेशा तार भेजते रहनेको कहा है। और यह भी सूचित किया है कि वे ऐसी सब कार्रवाई करें, जिससे स्वराज्य प्राप्त उपनिवेशके हकोंको धक्का न पहुँचे।

उधर, श्री कॉक्सने नोटिस दिया है कि यदि भारतीयोंके हकोंकी रक्षा न की जा सके, तो ट्रान्सवालको पचास लाख पौण्ड कर्जकी सहायता नहीं दी जानी चाहिए।

इन घटनाओंसे पता चलता है कि बड़ी सरकार ट्रान्सवालके भारतीयोंको छोड़ नहीं देगी। किन्तु इसमें खुली शर्त यह है कि ट्रान्सवालके भारतीय अपने आपको न छोड़ें। उनकी जेल जानेकी शक्तिपर सब कुछ निर्भर है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-८-१९०७

११२. जनरल स्मट्सका उत्तर

दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिने जनरल बोथाके नाम जो पत्र भेजा था उसका उत्तर जनरल स्मट्सने दिया है। उसका सारांश 'स्टार' आदि समाचारपत्रोंको तार द्वारा प्राप्त हुआ है। यह उत्तर एक मास पुराना है, इसलिए इसे अधिक महत्त्व देनेकी जरूरत नहीं। इसके बाद तो बहुतसी घटनाएं हो चुकी हैं, और उनका क्या प्रभाव पड़ा है यह अभी नहीं कहा जा सकता। परन्तु श्री स्मट्सका एक महीने पहलेका उत्तर बता रहा है कि यदि उनका वश चले तो वे एक भी भारतीयको नहीं रहने देंगे। भूमि सम्बन्धी अधिकार वे देंगे नहीं, अंगुलियोंकी छाप तो देनी ही है, ट्रामका कानून भारतीयोंके हितके लिए है, वैसी ही रेलवेकी बात है। तब फिर शेष क्या रहा? इतनेपर भी जनरल स्मट्स कह रहे हैं कि भारतीय नेतागण कानूनके सामने झुकना नहीं चाहते, इसलिए वे उन लोगोंकी सलाह नहीं लेना चाहते, यानी भारतीय समाजको किस प्रकार गुलाम बनाया जाये, इसे वे महानुभाव खुद अच्छी तरह जानते हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-८-१९०७
 

[१] पत्रकार; ब्रिटिश संसदके सदस्य। देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ११।

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