पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/१८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

११३. अलीका पत्र

श्री अलीने समाचारपत्रोंको पत्र लिखा है, इसे हम उचित कदम समझते हैं। हम मानते हैं कि श्री अलीका मामला बहुत ठोस है। उसका प्रभाव विलायतमें और दक्षिण आफ्रिकामें पड़े बिना नहीं रहेगा। श्री अलीने समितिको जो पत्र लिखा था उससे हुई भूल इस पत्रके द्वारा कुछ मात्रामें सुधर जाती है। श्री अली केप जानेवाले हैं। वहाँ वे चाहें तो देश-सेवा कर सकते हैं। केपके भारतीयोंने ट्रान्सवालकी लड़ाई में काफी भाग लेना शुरू किया है। उसे श्री अली बल दे सकते हैं। हम आशा करते हैं कि श्री अली केपमें पूरी तरह लड़ाई लड़ेंगे और केपके भारतीय भाई उनसे सहायता प्राप्त करेंगे। इस सम्बन्धमें हमें इतना कहना चाहिए कि जो सहायता करनेके लिए तैयार हैं उन्हें जेलके प्रस्तावका समर्थन करना है, ट्रान्सवालको जोश दिलाना है और जिनपर मुसीबत आये उन्हें आर्थिक सहायता देनी है। इससे भिन्न जो कुछ भी किया जायेगा वह सहायक होनेके बदले नुकसान करनेवाला होगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-८-१९०७

११४. हमारा कर्तव्य

हम इस अंकमें दो पत्र ऐसे प्रकाशित कर रहे हैं जिनमें उन लोगोंके नाम हैं जिन्होंने ३१ जुलाईको अपनी दूकानें बन्द नहीं की। इसके अलावा जिन्होंने प्रिटोरियामें गुलामीके पट्टेके लिए अर्जी दी थी उनके जो नाम हमारे पास पहुंचे हैं, उन्हें भी हम छाप रहे हैं। यह सब हमने अत्यन्त खेदके साथ प्रकाशित किया है। किन्तु हम समझते हैं कि जब एक महान लड़ाई लड़ी जा रही है तब हमें अपराधियोंके नाम छिपाने नहीं चाहिए। उनमें से एकपर भी हमें रोष नहीं है। किन्तु हम मानते हैं कि नामोंको इस प्रकार प्रकाशित करके हम देशसेवा कर रहे हैं। इस समय जरूरत यह है कि सारे भारतीय पूरी ताकत पकड़ लें और स्वार्थको छोड़ें। इसलिए कमजोर लोगोंके नाम प्रकाशित करने में हमारा उद्देश्य यह है कि दूसरे बलवान बनें। जिन लोगोंके नाम दिये गये हैं उन्हें कुछ सफाई देनी हो और वह संक्षेपमें हो तो उसे भी प्रकाशित किया जायेगा। जिन्हें अपनी भल दिखाई दे और वे पश्चात्तापके पत्र लिखें तो उन्हें भी हम छापेंगे। वे भी हमारे ही देशके हैं, यह समझकर हमें उनके कल्याणकी इच्छा करनी है और आशा है, इसी तरह हमारे पाठक भी चाहेंगे। हमारी लड़ाईमें गुस्सा, द्वेष, अहंकार, स्वार्थभावना, मारपीट, ये सब निकम्मे ही नहीं, हानिकारक भी हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-८-१९०७

[१] देखिये “अलीकी भूल", पृष्ठ १२४-२५।

  1. १.