सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/१८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

११५. केपके भारतीय

हम अपने २७ जुलाईके अंकमें लिख चुके हैं कि केपके भारतीयोंको क्या माँगना चाहिए, इसपर बादमें विचार करेंगे। अब यहाँ विचार करें।

केपमें एक कष्ट तो प्रवासी कानूनका है। उसमें केपसे बाहर जानेवाले भारतीयोंपर एक वर्षकी अवधिका पास लेनेका बन्धन है। यदि वे यह पास न लें और उन्हें अंग्रेजी न आती हो तो वे वापस नहीं आ सकते। इस कानूनको हम बहुत ही सख्त मानते हैं। ऐसा अनुमतिपत्र लेना स्वतन्त्र व्यक्तिका काम नहीं है। जिन्हें केपमें रहनेका हक है वे यदि एक बार परवाना ले लें तो वह हमेशा कायम रहना चाहिए। एक वर्षसे अधिक समय तक यदि कोई व्यापारी बाहर रहे तो क्या वह अपना व्यापार संभालनेके लिए केप वापस नहीं आ सकता? इसलिए अवधिकी यह उपधारा निकल जानी चाहिए।

इसके अलावा मियादी पास लेनेवालोंसे फोटो माँगा जाता है। अंगुलियोंकी छापकी अपेक्षा फोटो देना हम अधिक लज्जाजनक मानते हैं। ऐसी धाराएँ खत्म की जानी चाहिए।

दूसरा कानून व्यापारी परवानेका है। इस सम्बन्धमें परवाना अधिकारीके फैसलेपर अन्ततः सर्वोच्च न्यायालयमें अपील करनेका हक होना चाहिए। फेरीवालोंपर हर मुहल्लेके लिए अलग-अलग परवाना लेनेका जो बंधन है, वह भी दूर होना चाहिए।

ईस्ट लंदनमें पैदल पटरियों तथा बस्तियोंके विशेष नियम हैं। उनमें परिवर्तन करने के लिए कहा जाना चाहिए। शिक्षाके सम्बन्धमें भारतीय समाजको पूरी सुविधाएँ देनेके लिए हलचल की जानी चाहिए।

इतनी बातोंके बारेमें जो सर्वथा सन्तोषजनक उत्तर दें उन्हींको मत दिया जाये। यदि ऐसा कोई न मिले तो किसीको मत न दिया जाये। हम समझते हैं कि इसमें भारतीय समाजकी प्रतिष्ठा है और ऐसा करना उसका कर्तव्य है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-८-१९०७
 

[] देखिए “केपके भारतीय", पृष्ठ १२५-२६।

  1. १.