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११६. एस्टकोर्टकी अपील

एस्टकोटके भारतीयोंने नगरपालिका-मताधिकारके सम्बन्धमें जो अपील दायर की थी, उसका निर्णय उनके पक्षमें हुआ है। उसके लिए हम एस्टकोर्टके भारतीय बन्धुओंको बधाई देते हैं। इस अपीलका यह निर्णय हुआ है कि भारतीय समाजको एस्टकोर्ट नगरपालिकाके चुनावमें मत देनेका अधिकार है। अब सवाल यही रह जाता है कि उसके लिये आवश्यक सम्पत्ति आवेदकोंके पास है या नहीं। इस विजयसे बहुत फूलनेकी बात नहीं है, क्योंकि अभी नगरपालिका-विधेयक तो विलायतमें वैसा ही विचाराधीन है। परन्तु समितिके प्रयत्नसे मालूम होता है, उस विधेयकपर बड़ी सरकारकी स्वीकृति नहीं मिलेगी। फिर भी जिन्होंने अजी दी है वे अपने नाम मतदाता सूचीमें दर्ज करवा दें। इसके अतिरिक्त और कोई कदम उठाना हम उचित नहीं समझते।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-८-१९०७

११७. रासका पत्र

नेटाल रेलवेके मुख्य प्रबन्धक श्री रॉसने भारतीय समाजको अँगूठा दिखा दिया है। इस पत्रके कारण हम भारतीय समाजको बधाई देते हैं। जैसे-जैसे ये लोग हमारे धर्मोका अधिकाधिक अपमान करेंगे, हमारे रंगका अधिकाधिक तिरस्कार करेंगे वैसे-वैसे, यदि हम सच्चे होंगे तो, हम अधिक जोर कर सकेंगे। जैसा पत्र श्री रॉसने लिखा है वैसे पत्रोंसे हमें ज्ञात होता है कि दक्षिण आफ्रिकामें हमारी स्थिति कितनी दयनीय है। यदि हमें बाकायदा हक नहीं मिलते, तो हमारा धन हमें खाने दौड़ेगा। समझदार व्यक्तिके लिए उसका धन प्रतिष्ठाके बिना काँटेके समान बन जाता है। सहाराके रेगिस्तानमें किसीकी जेबमें सोनेकी ईंटें हों, किन्तु पानीकी बंद न मिले तो वे इंटेजहरके समान लगेंगी। उसी प्रकार इस देशमें बिना मानके हमारा धन जहरके समान बन जायेगा। श्री रॉसके पत्रके आधारपर तत्काल कुछ करनेकी आवश्यकता नहीं दिखाई देती। हमारी रायमें इन प्रश्नोंका निर्णय ट्रान्सवालकी लड़ाईके परिणामपर निर्भर है। बहुत आजिजी करने से हमारे मौलवियों, पादरियों और पुजारियोंको आधी कीमतमें टिकट मिल सकते हैं, किन्तु हमारे सामने यह प्रश्न नहीं है कि टिकट मिलेंगे या नहीं। सच्चा प्रश्न तो यह है कि गोरोंकी नजरोंमें हमारी कोई गिनती नहीं है, और यही बात नुकसानदेह है। गिनतीमें आनेका यही रास्ता है कि ट्रान्सवालके भारतीय अन्ततक-मृत्यु पर्यन्त—जूझें और प्रतिष्ठा प्राप्त करें। तब हम बिना मताधिकारके भी मताधिकारी हो जायेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-८-१९०७