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११८. डर्बनको कृषि-समितिका ओछापन

हमारे अंग्रेजी विभागमें एक भारतीय व्यापारीने लिखा है कि समितिने भारतीयोंको डर्बन-प्रदर्शनीकी प्रतियोगितामें भाग लेनेसे मना कर दिया है। यह बात बहुत ही बुरी है। गोरे भारतीयोंके परिश्रमसे डरते हैं, यह हम जानते हैं। मालूम होता है, वे भारतीयोंकी कुशलतासे भी डरते हैं और इसलिए नांदमें बैठे हुए कुत्तेका अनुकरण करते जान पड़ते वे न खाते है और न खाने देते हैं। समितिके इस कामसे सिद्ध होता है कि इस समय हमारा एक ही कर्तव्य है और वह है: मान-मर्यादा प्राप्त करना। यह बात अभी तो ट्रान्सवालके भारतीयोंके हाथमें है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन,१०-८-१९०७

११९. उमर हाजी आमद झवेरी

जून १८ के 'अखबारे सौदागर" से मालूम होता है कि श्री उमर झवेरीने बम्बईके किनारेपर पैर रखते ही भारतकी सेवा शरू कर दी है। उनके सम्मानमें श्री जगमोहनदास सामलदासने अपने बंगलेमें समारोह किया था। उसमें श्री उमर झवेरीने भारतीयोंकी हालतका चित्र खींचा। इसके अलावा उसी अखबारमें संवाददाताने उनके साथ मुलाकातका विवरण भी दिया है। वह तीन कालमोंमें छपा है। उसमें दक्षिण आफ्रिकामें होनेवाले कष्टोंका सारा विवरण दिया गया है। उपायके रूपमें बताया गया है कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय तीस करोड भारतीयोंकी मददपर भरोसा रखते हैं। श्री उमर झवेरीने अपने भाषणमें देशके भलेके लिए बैरिस्टर बननेका अपना इरादा फिर व्यक्त किया।

इस सबपर टीका करते हुए 'अखबारे सौदागर' के सम्पादकने श्री उमर झवेरीकी माँगका समर्थन किया है और भारतीय समाजसे मदद करनेकी सिफारिश की है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-८-१९०७
 

[१] बम्बईसे प्रकाशित होनेवाली एक गुजराती पत्रिका। [२] भूतपूर्व संयुक्त अवैतनिक मंत्री, नेटाल भारतीय कांग्रेस; देखिए, खण्ड ६, पृष्ठ ४७४-५।

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