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१२०. एक पारसी महिलाकी हिम्मत

श्रीमती भीकाईजी रुस्तमजी के० आर० कामाने 'सोशियालॉजिस्ट' में एक पत्र लिखा था, जो 'जामे जमशेद' में उद्धृत किया गया है। उसके इन जोरदार शब्दोंकी ओर हम अपने ट्रान्सवालके पाठकोंका ध्यान आकर्षित करते हैं:

भारतके पुरुषो और महिलाओ, मेरे शब्दोंपर ध्यान दो और इस पाप-कर्मका सामना करो। यह एक पुरानी कहावत है कि जो अपनी आजादी खोता है वह अपने आधे सद्गुण खोता है। इसलिए आजादी, इन्साफ और सच्चाईके लिए लड़नेको बाहर निकल पड़ो। भारतके लोगो, अपने मनमें निश्चय करो कि ऐसी गुलामीमें जीनके बजाय सारी जनता मर जाये, वही अच्छा। यदि आप गुलामीमें जीते हैं तो भारत, ईरान और अरबिस्तानके प्राचीन स्वर्ण-युगकी बातें करना बेकार है। बहादुर राजपूतो, सिक्खो, पठानो, गुरखो, देशाभिमानी मराठो और बंगालियो, चंचल पारसियो, बहादुर मुसलमानो और आखिरमें नम्र जैनो और धैर्यवान तथा महान बहुसंख्यक जनसमाजकी सन्तान हिन्दुओ, अपने प्राचीन इतिहासके अनुसार जिन्दगी क्यों नहीं बिताते ? इस तरह गुलामीमें क्यों जी रहे हो? बाहर निकलो।

श्रीमती भीकाईजी कामाको राजनीतिक जीवनका २० वर्षका अनुभव है। वे इस समय पेरिसमें रहती हैं। उन्हें अपने देशके लिए दर्द है। उन्होंने ये शब्द यद्यपि भारतके प्रति कहे हैं, फिर भी इस समय तो ट्रान्सवालके भारतीयोंपर लागू हो रहे हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन,१०-८-१९०७

१२१. भाषण: हमीदिया इस्लामिया अंजुमनमें

जोहानिसबर्ग
अगस्त ११, १९०७

हमीदिया इस्लामिया अंजुमन लगभग दो महीनेसे हर हफ्ते बैठक बुलाकर लोगोंमें साहस और उत्साह भर रही है। प्रिटोरियाकी सार्वजनिक सभाके लिए प्रिटोरियावालोंकी मदद करने के विचारसे एक विशेष ट्रेनका इन्तजाम करके लगभग छ: सौ व्यक्ति वहाँ गये थे। अंजुमनका समाजपर यह एहसान है। हम आशा करते हैं कि अंजुमन हमेशा ऐसे ही कदम उठाती रहेगी। यद्यपि प्रिटोरियामें कुछ लोगोंने पंजीयन करा लिया है, किन्तु वे पछता रहे हैं। इसलिए हमारी बाजी बिगड़ी नहीं है। प्रिटोरियावालोंने लाज रखी है और उनसे भी अधिक पीटर्स

[१] गांधीजीने हमीदिया इस्लामिया अंजुमनकी एक वैठकमें पंजीयन अधिनियम-विरोधी आन्दोलनका विवरण दिया था। यह उन्हींक भाषणकी रिपोर्ट है।

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