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भाषण: हमीदिया इस्लाममिया अंजुमनमें

बर्गवालोंने अपना कर्तव्य किया है। वहाँ किसी भी सज्जनने पंजीयन नहीं कराया, यह बधाईकी बात है। सरकार जहाँ-जहाँ कमजोरी देखती है, वहाँ-वहाँ पंजीयन-कार्यालयको भेज देती है। मुझे लगता है कि श्री चैमनेको शायद यह खबर भी मिली हो कि पीटर्सबर्गमें लोग कमजोर हैं और वे सार्वजनिक सभामें भी शामिल नहीं हुए। इसलिए कार्यालय वहाँ गया था, किन्तु सौभाग्यसे श्री जुसब हाजी वली और दूसरे लोगोंने मिलकर साफ इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि सरकार स्वेच्छया पंजीयन कराने देगी, तभी वे उसे मानेंगे नहीं तो भले ही वह उन्हें देश-निकाला या जेल दे, वे इस जहरीले कानूनको नहीं मानेंगे। अब सरकार शिथिल पड़ गई लगती है, क्योंकि पीटर्सबर्गकी जेलमें जो दो आदमी थे, उन्हें फुसलाकर अंगुलियोंकी छाप ली गई है। यह बड़ी शर्मकी बात है।

'जूटपॉसबर्ग रिव्यू' लिखता है कि भारतीय समाज चतुर और योग्य है। उसके साथ सोच-विचार कर बर्ताव किया जाना चाहिए। हमारी लन्दनकी समिति भी इस समय बड़ी मेहनत कर रही है। यह सार्वजनिक सभाओंका फल है। इस प्रकार हमें सभी स्थानोंसे मदद मिलनी शुरू हो गई है। फिर भी, हमें इतना तो याद रखना ही चाहिए कि कुछ व्यक्तियोंको जेलमें तो जाना ही है और यह सम्भव है कि सरकार उनमें से पहले मुझे पकड़े। दूसरे नेताओंके विषयमें ऐसा ही है। सरकार चाहे मुझे और दूसरे नेताओंको पकड़े, किन्तु यदि आप लोगोंने जो हिम्मत की है उसे कायम रखा, तो अन्तमें हमारी जीत है ही। अधिकारी परवानोंके बारेमें धमकी देते हैं, किन्तु यह उनकी गलती है। हम बिना परवानोंके व्यापार कर सकते हैं। इसके कारण वे हमपर जुर्माना कर सकते हैं और यदि हम जुर्माना न दें, तो हमें जेल भेज सकते हैं। किन्तु परवाना कानूनमें ऐसी व्यवस्था नहीं है कि हमें देश-निकाला दिया जा सके। इसलिए हमारे लिए इसमें डरनेकी भी कोई बात नहीं है। अब पंजीयन कार्यालय पॉचेफ्स्ट्रम और क्लार्क्सडॉर्प जायेगा। यदि वहाँ के लोगोंने बुलाया, तो हम जायेंगे, नहीं तो जाना आवश्यक नहीं है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १७-८-१९०७
 
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