मैंने जनरलका ध्यान अधिनियमके सम्बन्धमें ब्रिटिश भारतीयोंकी गम्भीर घोषणाकी ओर आकर्षित किया, इसके लिए मैं कोई क्षमा-याचना नहीं करता। जहाँतक मैं अपने देशवासियोंको सलाह दे सकता हूँ, परिणाम जो भी हों, मेरे लिए उनको अपनी ऐसी विचारपूर्वक की गई घोषणाको त्याग देनेकी सलाह देना सम्भव नहीं है। और यदि ऐन वक्तपर जनरल स्मट्सके लिए अधिनियमके मन्तव्यको किसी प्रकार सीमित किये बिना उस घोषणाको मान लेना सम्भव हो तो मैं उनकी सहानुभूति और सहायताका प्रार्थी हूँ। मैंने अपने देशवासियोंको जो सलाह दी है उसपर चलनेके सम्भावित परिणामोंसे कभी अपनी आँखें बन्द नहीं की है, अर्थात् यदि प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयक उपनिवेशकी विधि संहितामें सम्मिलित हो जाये तो प्रत्येक भारतीयको जेल भेजा जा सकता है, व्यापारियों और फेरीदारोंके व्यापारिक परवाने छीने जा सकते हैं और नेताओंको निर्वासित किया जा सकता है। किन्तु मैं सम्मानपूर्वक कहना चाहता है कि अधिनियमका पालन करना उन सब जोखिमोंसे अधिक बरा होगा जो उसका पालन न करनेसे उनपर आ सकती हैं।
मेरा यह पत्र-व्यवहार जनरल स्मट्ससे व्यक्तिगत अनुरोधके रूपमें है और खानगी है। किन्तु चूंकि मैं इस बातके लिए उत्सुक हूँ कि सरकारके इरादे यथासम्भव मेरे देशवासियोंके सम्मुख व्यापक और यथार्थ रूपमें रखे जायें, इसलिए यदि जनरल स्मट्सको कोई आपत्ति न हो तो मैं इस पत्र-व्यवहारको प्रकाशित करना चाहूँगा।
आपका आज्ञाकारी सेवक,
मो० क० गांधी
इंडियन ओपिनियन, २४-८-१९०७
१. यह २४-८-१९०७ के इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित हुआ था। देखिए पत्र: 'इंडियन ओपिनियन' को", पृष्ठ १७७।