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१२६. भारतीय प्रस्तावका क्या अर्थ?

अब अनुमतिपत्र कार्यालय गाँव-गाँव भटकता फिर रहा है। अधिकारी लोग घर-घर दलालोंके समान घूम रहे हैं। वे लोगोंको बहकाते और समझाते है कि उन्हें नये कानूनके अनुसार पंजीयनपत्र लेना चाहिए। इसके अलावा वे उलटे लोगोंसे ही पूछते हैं कि उनकी मांग क्या है। इसलिए यह जरूरी है कि स्वयंसेवक प्रत्येक भारतीयको पंजीयनका अर्थ समझाएँ। हमें देखकर खुशी है कि इस प्रकार लोगोंकी परीक्षा हो रही है। नये कानूनके बारेमें प्रत्येक भारतीयको पूरी और स्वतन्त्र बूझ होनी चाहिए। हमें आश्चर्य लोगोंकी परीक्षासे नहीं, बल्कि तब होगा जब हम जवाब न दे सकेंगे। अतः अब हम स्वेच्छया-पंजीयनके अर्थपर विचार करें।

कानूनके अनुसार सरकार लोगोंको नये पंजीयनपत्र लेनेके लिए विवश कर सकती है। इतना ही नहीं वह उन पंजीयनपत्रोंको बार-बार बदलवानेके लिए भी विवश कर सकती है। साथ ही वह लोगोंसे चाहे जब अँगुलियाँ लगवा सकती है। बच्चोंकी अंगुलियाँ भी लगवा सकती है। और परवाना लेते समय अँगुलियाँ लगवा सकती है। संक्षेपमें, नये कानूनकी सारी खूनी उपधाराएँ लागू हो सकती है। यह हमें मंजूर नहीं है। इसके बदलेमें हम सरकारसे कहते हैं कि उसका शक दूर करने के लिए हम मौजूदा अनुमतिपत्र बदलनेको तैयार है। इस प्रकार जो खुशीसे पंजीयनपत्र बदलवा लें उनपर नया कानून लागू नहीं हो सकता, और न कोई उपधारा ही लागू हो सकती है। यानी हमें जगह-जगह अँगुलियाँ नहीं लगानी पड़ेंगी। और यदि प्रत्येक भारतीय स्वेच्छया पंजीयनपत्र ले ले तो खूनी कानून बिलकुल रद हो जायेगा। यदि कोई भारतीय गफलतमें या जानबूझकर अनुमतिपत्र न बदलवाये तो केवल उसीपर नया कानून लागू होगा। इस प्रकार हमारी माँग और सरकारी कानूनमें जबरदस्त अन्तर है। सरकारी कानून तो गधेकी सवारी है। और उस सवारीसे भारतीय समाजकी फजीहत होती है। हमारी मांग हाथीकी सवारी है और उससे हम बादशाही और मान भोगते हैं।

इस मांगके अलावा प्रिटोरियाके कुछ लोगोंने वकीलकी मारफत श्री स्मट्सको जो पत्र लिखा है उसपर जरा विचार करें। श्री स्मट्ससे कुछ परिवर्तन करनेकी मांग की गई है। उसे हम सहलाना कहते हैं। भगंदरको साधारण फोडा मानकर यदि कोई खरोंच डालता कभी जख्म ऊपर-ऊपर सूख जाता है। इससे भगंदरका रोगी कभी-कभी मान लेता है कि उसका रोग मिट गया। किन्तु वास्तवमें भगंदर तो भीतर-ही-भीतर काम करता रहता है और भ्रममें पड़ा हुआ रोगी थोड़े दिनोंमें दूसरी जगह फोड़ा देखता है और जबतक वह भगंदरका इलाज नहीं करता, फोड़े होते और मिटते रहते हैं। यही बात हम उपर्युक्त कागजके सम्बन्धमें समझते हैं। भगंदरके रोगरूपी इस कानूनके लिए दो-चार चीजें निकाल देना कतई कोई इलाज नहीं है। यह केवल मन-बहलावके लिए है और हम मानते हैं कि इससे आखिर अधिक दुःख सहन करना होगा। इस भगंदरी कानूनके लिए जबरदस्त शल्य प्रक्रिया किये बिना और कोई चारा नहीं है। यह बात प्रत्येक भारतीय को जाननी चाहिए। अत: कानूनके बारेमें जब भी पूछताछ हो तो हमारी यही मांग होनी चाहिए कि कानून बिलकुल रद किया जाये; यह हमें साफ तौरसे समझ लेना चाहिए। और यदि यह कानून रद हो तो