हम झूठ लोगोंको छिपाना नहीं चाहते, यह सिद्ध करनेके लिए हम स्वेच्छया पंजीयन करवाने को तैयार है; किन्तु उतना करवा लेनेके बाद हम अपनेपर कानूनका हमेशाका सिर-दर्द नहीं रखना चाहते।
इंडियन ओपिनियन, १७-८-१९०७
१२७. पीटर्सबर्गको बधाई
प्रिटोरियाने ठीक कर दिखाया। लेकिन पीटर्सबर्गने तो हद कर दी। वहाँ एक भी "कल-पगा या कल-मुंहा" नहीं निकला। अनुमतिपत्र कार्यालयका शत-प्रतिशत बहिष्कार किया गया, और अनुमतिपत्र कार्यालयको बिना कलेवा, खाली पेट लौटा दिया गया। वह बला फिर पीटर्सबर्गमें कदम न रखे, इसके लिए सरकारके पास पहले ही आवेदन भेज दिया गया है कि हमें कार्यालय नहीं चाहिए। इससे अधिक कोई भी गाँव नहीं कर सकता और इससे कम एक भी गाँवको करना नहीं चाहिए।
कैदमें पड़े हुए दो व्यक्तियोंको जबरदस्ती अनुमतिपत्र दिया गया उससे पीटर्सबर्गका सम्मान रत्ती-भर भी नहीं घटता। देशमें अकाल आता है तो अकाल-पीड़ित लोग पेट भरनेके लिए अखाद्य वस्तुएँ खा जाते हैं। भूखे कुत्ते पाखाना चाटते हैं। उसी तरह खूनी कानुनके अधिकारीने भक्ष्य न मिलनेपर जेलमें जाकर जबरदस्तीसे जो नया अनुमतिपत्र दिया उसमें उसने अकाल-पीड़ितके समान ही काम किया है और वह बताता है कि नये अनमतिपत्र में सम्मान नहीं, बल्कि अपमान है। हम पीटर्सबर्गके लोगोंको बधाई देते हैं। उन्होंन जलाईकी अन्तिम तारीखको दुकानें बन्द न करनेका जो महान अपराध किया था द्वारा धुल गया है और वे बहादुर भारतीयोंकी दूसरी पंक्तिमें आ बैठे हैं। अपनी इस तरक्कीमें उन्हें यह याद रखना है कि वास्तविक लड़ाई अब आनेवाली है। जेलमें जाने और यह दिखानेका समय चला आ रहा है कि धनसे मान व देश अधिक प्यारा है। उस समय भी, हमें आशा है, पीटर्सबर्ग हिम्मतभरा उत्तर देगा।
इंडियन ओपिनियन, १७-८-१९०७