१२८. हनुमानकी पूँछ
कहा जाता है कि लंका जलाये जाने के पहले जैसे-जैसे वानर हनुमानजी आगे बढ़ते गये वैसे-वैसे उनकी पूँछ वजनमें बढ़ती गई थी। उसी प्रकार नये पंजीयनका दफ्तर भी जैसे-जैसे आगे बढ़ता है वैसे-वैसे उसका वजन बढ़ता जा रहा है। प्रिटोरियाका नोटिस निकला तब प्रिटोरियाके सब भारतीयोंको पंजीकृत होना था। कार्यालय जब पीटर्सबर्ग पहुँचा तब प्रिटोरियाको पीटर्सबर्गमें पंजीकृत होनेका अधिकार मिला। पॉचेफ्स्ट्रममें वहाँके भारतीयोंके अलावा प्रिटोरिया तथा पीटर्सबर्गके भारतीय भी पंजीकृत हो सकेंगे। और क्लार्क्सडॉर्पमें उपर्युक्त तीनों शहरोंके भारतीयोंको गुलामीका पट्टा लेनेका अवसर दिया जायेगा। इस प्रकार पंजीयन कार्यालयको पूंछ लम्बी होती जा रही है। हम प्रिटोरियाके भाइयोंके प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हैं, क्योंकि जबतक कार्यालय आखिरी जगहपर नहीं पहुंचेगा तबतक उनका पीछा नहीं छटेगा। यह सजा कहीं इसलिए तो नहीं दी गई है कि प्रिटोरियामें गद्दार अधिक मिले हैं? किन्तु हनुमानजी और कार्यालयमें बहुत अन्तर है। हनुमानजीकी पूंछपर जितना तेल डाला गया तथा चीथड़े लपेटे गये उतनी ही लंकामें ज्यादा आग लगी किन्तु हनुमानजीको आँच नहीं लगी। पंजीयन कार्यालयका काम खूनी कानूनको अमलमें लाना है। इसलिए उसकी यात्रासे जो गर्मी पैदा होगी उसमें, सम्भव है, वह कानून और कार्यालय दोनों जलकर भस्म हो जायेंगे, क्योंकि भारतीय समाज-रूपी लंकाको जलाना सम्भव नहीं है। भारतीय समाज निर्दोष है और जलानेवाला कानून दोषी है।
इंडियन ओपिनियन, १७-८-१९०७
१२९. नेटालके व्यापारियोंको चेतावनी
नेटाल सरकारके 'गजट' में एक विधेयक प्रकाशित हुआ है। उसके पास हो जानेपर यदि कोई व्यापारी अपनी दूकान बेचना चाहेगा तो उसे 'गज़ट' में और अपने आसपास प्रकाशित होनेवाले अखबारमें चौदह दिन पहले सूचना छपवानी होगी। नये परवाने लेनेवालोंको भी वैसी ही सूचना छपवानी होगी। ये दोनों शर्ते कड़ी है, फिर भी भारतीय कौम इनका विरोध नहीं कर सकती; क्योंकि ये सबपर लागू होती है। उसी विधेयकमें एक शर्त यह भी है यदि किसी कर्जकी मीयाद पूरी हो गई हो और कोई विशेष इकरार न हो तो उसपर अदालत आठ प्रतिशतसे ज्यादा ब्याज नहीं दिला सकती। किसी व्यापारीने किसी चीजकी बहुत ज्यादा कीमत ली हो तो उसके कारण इकरार रद नहीं हो सकता। यह विधेयक सरकारी है और सम्भव है पास हो जायेगा।
इंडियन ओपिनियन, १७-८-१९०७