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१३०. धोखा?

इस अंककी बहुत-कुछ सामग्री लिखी जा चुकी थी तब हमने सुना कि प्रिटोरियाके गद्दारोंकी जो सूची हमने प्रकाशित की है वह पूरी नहीं है। पिछले अंकमें हमने कुछ मेमन लोगों और एक हिन्दूका नाम प्रकाशित किया है। हमें अभी मालूम हुआ है कि उनमें कुछ कोंकणी भी है। उनके नाम हम यहाँ दे रहे हैं:

साथ ही हमने यह भी सुना है कि पीटर्सबर्गमें जेलके अन्दरके दो व्यक्ति ही नहीं, तीनचार और भी पंजीकृत हुए है। यदि यह बात सच है तो बहुत खेदजनक है। समाजमें ऐसे लोग मौजूद जान पड़ते हैं जो काला मुंह करनेके बाद भी मनुष्य होनेका पाखण्ड करते है। कोंकणियोंने प्रिटोरियामें साफ-साफ कहा है कि एक भी कोंकणीने अर्जी नहीं दी। पीटर्सबर्गमें तो उपनिवेश-सचिवको जो अर्जी दी गई है उसमें उपर्युक्त चारों व्यक्ति शामिल हैं। इसलिए दगाबाजीके ये दोनों मामले बहुत बड़े माने जायेंगे। सौभाग्यकी बात यही है कि ऐसे दगाबाज लोग बहुत थोड़े हैं। फिर भी समाजमें ऐसे लोग मौजूद हैं, इससे अच्छे लोगोंको बहुत चेतकर चलना चाहिए। ये सब कुल्हाड़ीके बेंटकी बात याद दिलाते हैं। इस समाजको ऐसे लोगोंके द्वारा जितना नुकसान पहुँचेगा, उतना खूनी कानून या सरकारसे नहीं। जो खुले आम जाकर पंजीयन करवायेगा वह एक प्रकारसे मर्द माना जायेगा। किन्तु जो चोरीसे पंजीयन करवाकर साहूकार बनेगा उसे हम कौनसी उपमा दें?

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १७-८-१९०७
 

[१]देखिए "हमारा कर्तव्य", पृष्ठ १५६।

[२] मूळमें दिये गये नौ नाम यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं।

  1. १.
  2. २.