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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

विवेचन किया और श्री आमद कुवाड़ियाने श्री पोलककी मेहनतके सम्बन्धमें दो शब्द कहे। इसके बाद अध्यक्ष महोदयने सभा बरखास्त की।

जेल जानेवालेके पीछे क्या होगा?

इस प्रश्नका उत्तर में पहले भी इस चिट्ठी में दे चुका हूँ। किन्तु फिर पूछा गया है, इसलिए देता हूँ। मेरी समझमें जो जेल जानेको तैयार बैठे हैं वे यथासम्भव सारी व्यवस्था कर ही लेंगे, यानी समाजपर उनका बोझ कम ही रहेगा। एक ही महल्ले या दूकानके सभी व्यक्ति एक साथ पकड़ लिये जायें सो तो नहीं होगा। यदि यह विचार ठीक हो तो गिरफ्तार किये जानेवालोंके सगे-सम्बन्धी या दोस्त उनके बाल-बच्चों और जायदादकी रक्षा कर लेंगे। जो लोग दूसरे कानूनोंके अन्तर्गत गिरफ्तार किये जाते हैं हमने देखा है, उनकी, इसी प्रकार व्यवस्थाकी जाती है। फिर भी इतना पर्याप्त नहीं है। जो व्यक्ति नये कानूनके अन्तर्गत गिरफ्तार किया जायेगा उसकी सार-सँभाल संघ करेगा। उसके बाल-बच्चे कहाँ है, तथा किस हालतमें हैं, उन्हें कोई देखनेवाला है या नहीं, संघ इन बातोंकी जाँचपड़ताल करेगा और निर्वाहकी व्यवस्था करेगा। अतः नये कानूनके अन्तर्गत गिरफ्तार किये जानेवाले व्यक्तिके लिए दुहरी मदद मौजूद है। जेल जानेवाले व्यक्तिकी मर्जीके मुताबिक उसकी दूकान तथा बाल-बच्चोंकी व्यवस्था हो सकेगी। श्री पारसी रुस्तमजी जैसे वीरोंने जो पत्र लिखे है ऐसे अवसरपर उनका लाभ हमें मिलेगा। इस लड़ाईमें हम सत्यके लिए मरनेवाले हैं। इसलिए कदम-कदमपर हमें खुदाकी मदद मिलेगी। ऐसी मदद वह खुद नीचे उतरकर नहीं करता, बल्कि इन्सानके दिलमें बैठकर उससे परोपकारके रूपमें करवाता है। उपर्युक्त प्रश्न उठते रहते हैं, इससे मालूम होता है कि हमने इतना बड़ा कौमी काम पहली बार हाथमें लिया है, इसलिए डर लग रहा है। यह बात समझमें आ सकती है। किन्तु विचार करनेपर सब देख सकेंगे कि घबड़ाने-जैसी कोई बात नहीं है। यह भी प्रश्न उठा है कि कहीं १३,००० भारतीयोंको एक साथ जेलमें भेज दें तो क्या होगा? फिर बाल-बच्चोंकी सार-संभाल कौन करेगा? यह सवाल केवल डरके कारण ही उठता है। खुदापर तिल-मात्र भी भरोसा रखनेवाला ऐसा प्रश्न नहीं उठा सकता, फिर भारतीय मानस, जो कि खुदा या ईश्वरसे सदा डरनेवाला है, ऐसे प्रश्न कैसे उठा सकता है? १३,००० भारतीय एक साथ जेल जायें ऐसा शुभ अवसर एक तो आनेवाला नहीं है और यदि आ गया तो सबको मानना चाहिए कि उनके पीछे रहनेवालोंको संभालने वाला महबूब बड़ा है। इसके अलावा यदि उपर्युक्त प्रश्न उठता है तो हम यह भी प्रश्न उठा सकते हैं कि यदि भूकम्पमें सारेके-सारे १३,००० भारतीय मर जायें तो उनके पीछे रहनेवालोंको कौन संभालेगा? उन्होंने ऐसा कौन-सा अपराध किया है जो केवल उनके बाल-बच्चे अथवा जायदाद अनाथ बन जायें। किन्तु यदि अनाथ ही होना है तो उतनी देशसेवा हम क्यों न करें? यदि देशसेवा न करेंगे तो हमें इज्जत कैसे मिलेगी? देशकी सेवा किसे कहा जायेगा?

"प्रगटे जो दिलमा प्रेम प्राण शु' प्यारो
हिमतनी मददे खुदा सदा छ यारो"

१. क्या।

२. की।

३.हैं।