१३६. पत्र: ‘स्टार’ को
जोहानिसबर्ग
अगस्त १९,१९०७
सम्पादक
‘स्टार’
आपने उस विषयको, जिसे आप एशियाई कानून संशोधन अधिनियमसे सम्बन्धित मेरी 'योजना' कहते हैं, एक सम्पादकीय टिप्पणीसे गौरवान्वित किया है। किन्तु, ऐसा करते समय आपने उसे सरसरी तौरपर पढ़कर उसके और मेरे प्रति न्याय नहीं किया। मेरे मसविदेमें बताई गई धाराओंको प्रवासी विधेयकमें शामिल कर लेनेसे सरकारको हर अनमतिपत्र वापस लेने और उसके स्थानपर ट्रान्सवालके प्रत्येक वास्तविक एशियाई निवासीको अधिवासी-प्रमाणपत्र जारी करनेका कानूनी अधिकार प्राप्त हो जाता है। और यदि आप मेरा मसविदा दुबारा पढ़ें तो देखेंगे कि इन प्रमाणपत्रोंके स्वरूपका विनियमन सरकारपर छोड़ दिया गया है। अतः, अँगुलियोंके निशानोंके प्रश्नको कभी विवाद-विषयक नहीं बनाया गया है; और न ही, जहाँतक मेरा सम्बन्ध है, यह कभी कोई बुनियादी सवाल रहा है। मुख्य आपत्ति विधेयकमें निहित अनिवार्यता और उसके उस रुखके प्रति है जिससे भारतीयोंके साथ जरायमपेशा लोगोंकी तरह बर्ताव करनेकी बू आती है। मेरे द्वारा प्रस्तुत मसविदेसे सरकार उपनिवेशमें अधिवासाधिकारकी मांगके हकदार एशियाइयोंकी ठीक संख्या मालूम कर सकेगी और ऐसे एशियाइयोंकी शिनाख्त भी पूरी तरह हो जायगी। मसविदा जिन बातोंको छोड़ देता है वे हैं एशियाई पंजीयन अधिनियममें निर्दिष्ट विस्तृत तन्त्र और दण्ड-विधान। मसविदा १६ बरससे कम आयुके बच्चोंको भी तबाहीसे बचाता है और उस कष्टप्रद निरीक्षणको टाल देता है, जो पंजीयन अधिनियमके अन्तर्गत अपेक्षित शिनाख्तके सिलसिलेमें आते-जाते कहीं भी किया जा सकता है। किन्तु मैं यह कह दूं कि यह बच्चोंके जाली प्रवेशका निराकरण पूर्ण रूपसे कर देता है, क्योंकि मसविदेमे यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अधिवासी-प्रमाणपत्रोंपर १६ वर्षसे कम आयुवाले बच्चोंकी संख्या लिखी जायेगी और १६ वर्षके होनेपर उन्हें अधिवासी-प्रमाणपत्र लेना पड़ेगा। फिर भी यदि मेरी योजनाको सदोष माना जाये तो कमसे-कम प्रवासी विधेयकम शिनाख्त सम्बन्धी विधान शामिल करने के सिद्धान्तको तो सदोष नहीं माना जा सकता, और उन सारे दोषोंका निराकरण किया जा सकता है जिनपर मेरी निगाह नहीं पड़ी है। इसलिए, अब भी प्रश्न यही है कि महामहिमकी भारतीय प्रजाके कल्याणकी दृष्टिसे जनता इस वैकल्पिक प्रस्तावका गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करेगी या नहीं।
[१] यह २४-८-१९०७ के इंडियन ओपिनियन में उद्धत किया गया था।
[२] यहाँ जनरल स्मटसके निजी सचिवके नाम लिखे पत्रके साथ भेजे गये प्रस्तावकी ओर संकेत किया गया है। देखिए पृष्ठ १४९-२०।