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१३९. पत्र: ‘रेड डेली मेल’ को

[जोहानिसबर्ग]
अगस्त २०, १९०७

सेवामें

सम्पादक
‘रैड डेली मेल’

[जोहानिसबर्ग]
महोदय,

जनरल स्मट्सको भेजे मेरे प्रस्तावको आपने सम्पादकीय टिप्पणी लिखकर मान प्रदान किया है, उसमें एशियाई आबादीको सलाह दी है कि "वह अपने निश्चयपर और विचार करे, क्योंकि वह निश्चय एक जोशके क्षणमें और शायद इस बातको पूरी तरह समझे बिना किया गया है कि एक ऐसे देशमें, जहाँकी बहुत बड़ी आबादी अर्ध-बर्बर लोगों की है, कानूनका संगठित विरोध करना कितनी गम्भीर बात है।" यह एक विचित्र बात है कि आप एक ऐसे संकल्पको, जिसपर पिछले दस महीनोंसे लोग दृढ़ हैं, “जोशके क्षणमें किया गया" समझते हैं।

फिर भी, मैं ये चन्द पंक्तियाँ यह मालूम करनेके लिए लिख रहा हूँ कि क्या आप जनताको बता सकते हैं कि “कानूनका संगठित विरोध करनेकी गम्भीरता" और "बहुत बड़ी अर्ध-बर्बर आबादी" के बीच क्या सम्बन्ध है? क्या इस आबादीसे ब्रिटिश भारतीयोंपर हमला कराया जायेगा, क्योंकि ब्रिटिश भारतीय ऐसे कानूनको मानने के लिए तैयार नहीं हैं जो उन्हें नामर्द बनानेवाला है?

आपका आदि,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
रैड डेली मेल, २२-८-१९०७