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१४०. आवेदनपत्र: उपनिवेश मन्त्रीको

पो० ऑ० बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग
अगस्त २३, १९०७

सेवामें

परममाननीय उपनिवेश मन्त्री

लन्दन
साम्राज्य सरकारको ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षका प्रार्थनापत्र सविनय निवेदन है कि:

ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय संघकी समिति ट्रान्सवालकी संसद द्वारा पास किये गये प्रवासी-प्रतिबन्धक विधेयकके बारेमें महामहिमकी सरकारकी सेवामें सविनय निवेदन करती है कि:

उक्त समितिने इस कानूनके बारेमें ट्रान्सवाल संसदके दोनों भवनोंके सम्मुख विनयपूर्वक अपना प्रार्थनापत्र प्रस्तुत किया। इन प्रार्थनापत्रोंको देखनेसे यह विषय और भी अच्छी तरहसे साफ हो जायेगा। इसलिए उक्त दोनों भवनोंमें प्रस्तुत किये गये प्रार्थनापत्रोंकी नकलें इस गर्थनापत्रके साथ नत्थी कर दी गई हैं। उनपर क तथा ख चिह्न लगा दिये गये हैं।

उक्त समिति सविनय निवेदन करती है कि उक्त विधेयकपर निम्नलिखित कारणोंसे एतराज किया जा सकता है:

(१) यह एशियाई कानून संशोधक अधिनियमको स्थायित्व प्रदान करता है।
(२) यह उन भारतीयोंके अधिवास-अधिकारको अवहेलना करता है जो ट्रान्सवालमें युद्धसे पूर्व बस चुके थे और जिनमें से अनेक १८८५ के कानून ३ के अन्तर्गत अपने अधिवासके मूल्य-स्वरूप तीन पौंडकी रकम भी दे चुके हैं, किन्तु अभीतक ट्रान्सवाल नहीं लौट सके हैं। इसका कारण या तो यह है कि उनके प्रार्थनापत्र देने पर भी उनको लौटनेके अनुमतिपत्र नहीं मिले हैं अथवा उन्होंने शान्तिरक्षा अध्यादेशके अधीन ऐसे अनुमतिपत्रोंके लिए प्रार्थनापत्र ही अबतक नहीं दिये हैं।
(३)इसमें विधेयककी शर्तके अनुसार किसी भी भारतीय भाषाको शिक्षा सम्बन्धी योग्यताका अंग नहीं माना गया है।
(४) इस विधेयकके खण्ड २ के उपखण्ड ४ के अनुसार विधेयक द्वारा निश्चित शिक्षाकी परीक्षा पास करनेवाले भारतीयोंपर भी एशियाई कानून संशोधन अध्यादेश लागू होता है।

[१] यह आवेदनपत्र इंडियन ओपिनियन के ३१-८-१९०७ के अंकमें और इसका गुजराती अनुवाद २४-८-१९०७ के अंकमें छपा था।

[२] ये पहले तिथि-क्रमानुसार दिये जा चुके हैं; देखिए क्रमश: “प्रार्थनापत्र: ट्रान्सवाल विधानसभाको" पृष्ठ ९२-९३ और “प्रार्थनापत्र: ट्रान्सवाल विधान परिषद्को", पृष्ठ ११५-११६।

[३]देखिए आवेदनपत्रके साथ दिया गया परिशिष्ट 'ग'।

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  2. २.
  3. ३.