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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
(५) ट्रान्सवालमें पहलेसे बसे हए भारतीय व्यापारियोंको उसके अन्तर्गत यह सुविधा नहीं दी गई कि वे अपने विश्वासी क्लार्को, सहायकों व घरेलू नौकरोंको अस्थायी रूपसे बाहरसे बुलवा सकें।
(६) इस विधेयकके खण्ड ६ के उपखण्ड ग द्वारा यह अधिकार दिया गया है कि एशियाई कानून संशोधक अधिनियमकी सीमामें आनेवाले लोगोंको पकड़कर जबर्दस्ती निर्वासित किया जा सकेगा।

उपर्युक्त विषयपर दलीलें

उक्त समिति अब एतराजके उपर्युक्त कारणोंके बारेमें क्रमशः चर्चा करनेकी सविनय अनुमति मांगती है।

प्रथम कारण

जैसा कि महामहिमकी सरकारको पता है, एशियाई कानन संशोधक अधिनियम ट्रान्सवालमें रहने वाले भारतीयोंमें अधिकसे-अधिक सन्ताप पैदा कर रहा है, उसकी शर्त उस समाजके स्वाभिमानके लिए इतनी अपमानजनक तथा हानिप्रद महसूस की जा रही है कि उसके बहुतसे सदस्य उसके अधीन पंजीयन स्वीकार करनेकी अपेक्षा अपनी समस्त सांसारिक सुख-सुविधाओंके छिन जानेका खतरा मोल लेकर भी नम्रतापूर्वक अपना पंजीयन न करानेका दण्ड भुगतनेको तैयार हैं। पहले-पहल पेश किये जानेपर इस विधानको अस्थायी रूप देनेकी बात थी और कहा गया कि उसे एशियाइयोंके प्रवासके बारे में जनता द्वारा निर्वाचित सभाका अभीसे निर्णय न माना जाये। साथ ही यह भी कहा गया था कि वर्तमान विचाराधीन विधेयकको केवल इसलिए उपस्थित किया जा रहा है कि इस सम्बन्धमें कोई और कानून मौजूद नहीं है। इस विधेयकका पहला खण्ड ही एशियाई कानून संशोधक अधिनियमको स्थायी बना देता है और शान्ति-रक्षा अध्यादेशकी शर्तोको भी वहाँतक बनाये रखता है, जहाँतक एशियाई कानून संशोधक अधिनियमके अमलके लिए उसकी आवश्यकता पड़े।

दूसरा कारण

यह सर्वविदित है कि बहुतसे भारतीय जो युद्ध आरम्भ होनेपर ट्रान्सवालसे चले गये थे, अपने अपनाये हुए देशमें अभीतक वापस नहीं आये हैं। इस देशमें बस जानेके उद्देश्यसे उनमेंसे अनेक पुरानी डच सरकारको ३ पौंड दे चके हैं। शान्ति-रक्षा अध्यादेशके क उनके अनुमति पत्र मिलने के मार्गमें इतनी गम्भीर बाधाएँ खड़ी हो गई है--यद्यपि पराये यूरोपीय भी उन्हें माँगते ही पा जाते है--कि वे ट्रान्सवालमें अभीतक वापस नहीं आ सके हैं। उनमें से कुछने तो अभी अजियाँ भी नहीं दी है। इन शरणार्थियोंको इस विधेयकके अनुसार कोई यूरोपीय भाषा न जानने के कारण ट्रान्सवालमें वजित प्रवासी करार दे दिया जायेगा। यह निषेध निहित स्वार्थ रखनेवाले सुपात्र ब्रिटिश प्रजाजनोंके विरुद्ध बहुत सख्तीसे लागू किया जायेगा। इस प्रकार स्थायी निवासके अधिकारको मंसूख करने में यह विधेयक केप उपनिवेशमें प्रचलित ऐसे कानूनोंसे आगे निकल जाता है।

तीसरा कारण

भारतीय भाषाओंको मान्यता देनेसे इनकार करके यह विधेयक अनुचित तथा अन्यायपूर्ण भाव उत्पन्न कर रहा है।