सकता। इसपर श्री गांधीने और उत्तर दिया[१] है कि अँगुलियाँ लगाना मुख्य आपत्ति तो नहीं, किन्तु आपत्तिजनक तो है ही। इसके अलावा अँगुलियाँ लगाना अनिवार्य हो ही नहीं सकता। लॉर्ड मिलनरके समयमें भारतीय समाजने स्वेच्छया एक अंगूठा लगाना स्वीकार किया था। भारतीय समाज दस अँगुलियाँ तो स्वेच्छापूर्वक भी नहीं लगायेगा। 'स्टार' ने निवेदनको ठीक तरहसे नहीं देखा है। जबतक गोरे ठीक तरहसे छानबीन नहीं करते, तबतक समझौता हो ही नहीं सकता। किन्तु प्रत्येक गोरा काले भारतीय समाजके विरुद्ध हो तब भी खुदा तो उसके साथ है, और इतना काफी है।
संघकी बैठक
बुधवारको संघकी बैठक हुई थी। उसमें श्री ईसप मियाँ, श्री अब्दुल गनी, श्री नायडू, श्री शहाबुद्दीन, श्री अस्वात, श्री मालिम मुहम्मद, श्री इमाम अब्दुल कादिर, श्री उमरजी साले, श्री गुलाम मुहम्मद, श्री एम॰ पी॰ फैन्सी, श्री कड़ोदिया, श्री मूसा इसाकजी, श्री आई॰ ए॰ काजी, श्री अमीरुद्दीन, श्री बल्लभ राम, श्री अम्बादास तथा अन्य उपस्थित थे। श्री गांधीने प्रवास विधेयक सम्बन्धी अर्जी पढ़ी तथा उसे और उसके सम्बन्ध में तार[२] भेजनेकी अनुमति मांगी। श्री शहाबुद्दीनके प्रस्ताव और श्री फैन्सीके समर्थनसे अनुमति दी गई। श्री मुहम्मद शहाबुद्दीनके प्रस्ताव और श्री कुवाड़ियाके समर्थनसे श्री ईसप मियाँ स्थायी अध्यक्ष बनाये गये और इमाम अब्दुल कादिरके प्रस्ताव और श्री नायडूके समर्थनसे श्री पोलकको सहायक अवैतनिक मन्त्री नियुक्त किया गया।
श्री फैन्सीके प्रस्ताव और श्री उमरजी सालेके समर्थनसे निर्णय किया गया कि संघका हिसाब हर माह, 'इंडियन ओपिनियन' में प्रकाशित किया जाये।
अन्तिम तार
लोकसभा में ट्रान्सवालको कर्ज दिये जानेके सम्बन्ध में प्रस्ताव किया गया था वह मंजूर हो गया है। किन्तु उसपर टीका करते हुए सर चार्ल्स डिल्क, श्री लिटिलटन, श्री कॉक्स आदि सदस्योंने भारतीयोंको होनेवाले कष्टोंके सम्बन्धमें बहुत कहा। श्री लिटिलटनने, जो पहले सचिव थे, कहा कि कर्ज देनेके पहले बड़ी सरकारका कर्तव्य था कि वह भारतीयोंके हकोंकी रक्षा करती। किन्तु उसमें वह चूक गई है। श्री कॉक्सने लोकसभा में सवाल उठाया है कि बड़ी सरकारको चाहिये कि वह डच सरकारको सलाह दे कि वह ट्रान्सवाल छोड़कर जानेवाले भारतीयोंको ५०,००,००० पौंडके इस ऋणसे हर्जाना दे। इस हलचलसे जान पड़ता है कि भारतीय यहाँ जितना जोर दिखायेंगे विलायतमें उनके पक्षमें उतने ही ज्यादा लोग होंगे।
इंडियन ओपिनियन, २४-८-१९०७