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१५३. पत्र:जोहानिसबर्ग नगरपालिकाको

[जोहानिसबर्ग
अगस्त २८, १९०७]

[टाउन क्लार्क

जोहानिसबर्ग

महोदय,]

मेरे संघकी समितिने समाचारपत्रों में सामान्य प्रयोजन समितिका यह सुझाव देखा है कि मार्ग यातायात उपनियमों में ऐसे संशोधन कर दिये जायें कि, दूसरोंके साथ-साथ, ब्रिटिश भारतीय भी प्रथम श्रेणीकी किरायेकी बग्घियोंका उपयोग न कर सकें। मेरी समिति यह कहनेकी धृष्टता करती है कि ऐसा उपनियम ब्रिटिश भारतीयोंके विरुद्ध द्वेषपूर्ण भेद उत्पन्न करेगा, और उस समाजके लिए अनावश्यक रूपसे अपमानजनक होगा जिसका मेरा संघ प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए मुझे भरोसा है कि नगर परिषद सामान्य प्रयोजन समितिकी सिफारिशको स्वीकार न करेगी।

[आपका आदि,
ईसप इस्माइल मियाँ]
अध्यक्ष
ब्रिटिश भारतीय संघ

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३१-८-१९०७

१५४. प्रवास-प्रार्थनापत्र

ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय संघने ट्रान्सवालके प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयकके बारेमें जो २६ तारीखके 'गज़ट' में इस रोककी धाराके साथ अधिनियमके रूपमें छपा है कि, "जबतक राज्यपाल 'गज़ट' में यह घोषित न कर देंगे कि महामहिमकी इच्छा उसे अस्वीकार करनेकी नहीं है, तबतक यह अधिनियम अमलमें न आयेगा", लॉर्ड एलगिनको अविलम्ब प्रार्थनापत्र[१] भेज दिया है। जबतक शाही मर्जीका पता न चले, रोककी धारामें कोई बल नहीं है। इसलिए लॉर्ड एलगिनके पास अब उस साम्राज्य सम्बन्धी भूलको सुधारनेका एक मौका है जो हमारे विचारसे, उन्होंने महामहिमको एशियाई पंजीयन अधिनियम स्वीकार करनेका परामर्श देनेमें की थी। प्रार्थनापत्र में श्री ईसप इस्माइल मियाँने सम्बद्ध कानून के उत्पन्न होनेवाले हर मुद्देकी चर्चा की है। तो भी फिलहाल हम अपनी चर्चाको कानूनके उस पहलू तक ही सीमित रखना चाहते हैं, जिसका असर ट्रान्सवालमें बसे भारतीयोंपर पड़ता है।

  1. देखिए "आवेदनपत्र: उपनिवेश मन्त्रीको", पृष्ठ १८३-१८८।