पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/२३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२००
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


हमें याद है कि श्री डंकनने जोर देकर कहा था कि एशियाई पंजीयन अधिनियमको इसलिए जरूरी समझा गया था कि उस समय कोई प्रवासी अध्यादेश लागू नहीं था, और उसको केवल एक अस्थायी कदम ही समझा जाना ना। वह निस्सन्देह एशियाइयोंके प्रवासके तथाकथित ज्वारको रोकनेके लिए एक घबराहटका कानून भी था और, माननीय श्री कर्टिसके शब्दोंमें, यह प्रवास-रूपी ज्वार कमसे-कम २०० व्यक्ति प्रतिमासकी दरसे आ रहा था। श्री डंकन तथा श्री कर्टिसके वक्तव्यकी[१] यह एक अनोखी तारीफ है कि तत्कालीन उपनिवेशसचिवके प्रास्ताविक भाषणके एक वर्ष बाद भी अबतक पंजीयन नहीं हुआ। और, यह भी कि एशियाई पंजीयन अधिनियम अबतक लगभग लागू ही नहीं हुआ। हाँ, इतना जरूर हुआ है कि पंजीयन अधिकारी उन लाभोंके लिए एशियाई प्राथियोंकी तलाशमें उपनिवेशमें गश्त लगाते रहते हैं जो, लॉर्ड सेल्बोर्नके कथनानुसार, पंजीयन अधिनियम उन्हें प्रदान करता है। और यही वह अधिनियम है जिसे विचाराधीन विधान स्थायी बनाता है। और इस तरह जहाँ यह ट्रान्सवालके गोरे निवासियोंको शान्ति-रक्षा अध्यादेशसे मुक्त करता है, वहीं एशियाइयोंकी गर्दनके फंदेको और भी कस देता है।

इस प्रकार, एशियाई देखते हैं कि गोरी ब्रिटिश प्रजाको अधिक स्वतन्त्रता देनेका अर्थ एशियाई ब्रिटिश प्रजापर अधिकाधिक पाबन्दियाँ लगाना होता है। साम्राज्यके इस नये लाड़ले बच्चेको, दूसरे तथा अधिक पुराने स्वशासन-भोगी उपनिवेशोंके विपरीत, उन भारतीयोंके अधिकारोंका अपहरण करने दिया जा रहा है जो पुरानी डच सरकारको तीन पौंड चुकानेके कारण पहलेसे ही ट्रान्सवालके स्थायी निवासी बन चुके हैं। क्योंकि, जैसा ब्रिटिश भारतीय संघका कहना है, प्रवासी अधिनियमके मातहत केवल उन्हीं एशियाइयोंको स्थायी निवासी होनेका अधिकारी माना जायेगा जो इस एशियाई अधिनियमके मुताबिक पंजीकृत होंगे।

संघ द्वारा उठाया गया यह आखिरी मुद्दा 'सख्तीमें' हमारे बतलाये हुए दूसरे दो मुद्दोंके भी कान काटता है। इसमें इस बातकी व्यवस्था की गई है कि जो ब्रिटिश भारतीय इस नये कानूनके अनुसार पंजीयनका प्रमाणपत्र न लेंगे उनको पकड़कर उपनिवेशसे जबर्दस्ती निकाला जा सकता है। अब, प्रमाणपत्र लेना अन्ततः एक ऐसी औपचारिकता है जिसमें गुलामीकी बहुतसी बातें आ जाती। ऐसा तो नहीं है कि जो लोग पंजीयनका प्रमाणपत्र नहीं लेते वे ट्रान्सवालके निवासी नहीं हैं। वास्तवमें एशियाई अधिनियमके विरुद्ध वीरतापूर्ण मोर्चा लेनेवाले अधिकतर भारतीय इस उपनिवेशके पुराने सम्मानित निवासी हैं। हमारे अध्यक्षकी तरह उनमें से कुछ तो बीस-बीस वर्षसे यहाँ रह रहे हैं। उनकी सभी सांसारिक सम्पत्ति, यहाँ तक कि, उनके परिवार, उनके पूजा-स्थान तथा ऐसी प्रत्येक वस्तु भी, जिसे वे संसारमें प्रिय समझते हैं, इसी उपनिवेशमें हैं। ये ही वे लोग हैं जो अपमानपूर्ण दस्तावेजोंको लेनेसे इनकार करनेके कारण अपने घरोंसे जबर्दस्ती निकाले जानेवाले हैं, और यह निर्वासन निर्वासितोंके खर्चेसे ही किया जायेगा; इससे ट्रान्सवाल सरकारपर उनको भोजन तथा निवास देनेकी भी कोई जिम्मेदारी नहीं आयेगी। श्री मियाँ बखूबी कह सकते हैं कि यह निर्वासन घोर अपराधोंके लिए दिये हुए निर्वासन दण्डसे भी बुरा होगा।

लॉर्ड एलगिन जो हमारे साथ सहानुभूतिकी घोषणा कर चुके हैं और वाइसराय रह चुके हैं, यदि महामहिमको इस प्रकारके कानूनको स्वीकार करनेका परामर्श देते हैं तो उससे

  1. देखिए खण्ड ५, १४ ३९२-९३।