निर्दोष लोगोंपर मुकदमा चलानेकी मंजूरी न देकर लेडीस्मिथ निकायके आचरणपर अपनी नापसन्दगी जाहिर करेगी। लेकिन यह बात बिलकुल स्पष्ट है कि संघने कार्यवाही करनेके लिए सरकारपर दबाव डाला है। क्योंकि ऐसा मालूम पड़ता है कि महान्यायवादीने, अगर ये लोग बिना परवानाके व्यापार करना जारी रखें तो, उनके खिलाफ कार्यवाही करनेके लिए सरकारी वकीलको अधिकार दे दिया है। नेटालके व्यापारी परवाना अधिनियमका[१] अमल इस तरहका है कि साम्राज्य सरकारने उससे राहत देने में एक तरहसे अपनी असमर्थता स्वीकार कर ली है। भारत सरकार, जो निश्चय ही सशक्तिमान है, अपने इस एकमात्र और कारगर उपायको, कि यदि भारतकी स्वतन्त्र प्रजाको न्यूनतम न्याय भी नहीं मिलता है तो गिरमिटिया भारतीय प्रवासको रोक दिया जाये, इस्तेमाल नहीं करती।
इंडियन ओपिनियन, ३१-८-१९०७
१५७. दादाभाई जयन्ती
भारतके पितामह दादाभाई नौरोजीकी जयन्ती सितम्बर ४ को आ रही है। उनके इस पृथ्वीपर रहने के दिनोंका अन्त निकट आता जा रहा है। ज्यों-ज्यों दिन बीत रहे हैं, इन पितामहका तेज बढ़ता जा रहा है। लन्दन उनके लिए अरण्य है। उस अरण्य में देशके हितार्थं वे फकीरी लेकर रहते हैं। जिन्होंने विलायतमें उनका दफ्तर देखा है वे जानते हैं उनके दफ्तर और मढीमें कुछ भी अन्तर नहीं। उसमें दो व्यक्ति मुश्किलसे बैठ सकते हैं। उसमें बैठकर करोड़ों भारतीयोंके दुःखोंका बोझ अपने सिर लिये हुए हैं। इतनी अधिक आयु हो जानेपर भी उनमें एक नौजवान भारतीयसे अधिक काम करनेकी ताकत है। उनकी दीर्घायुकी कामना करते हुए हम परमेश्वरसे प्रार्थना करते हैं कि वह हमें व हमारे इस पत्रके साथ सम्बन्ध रखनेवाले सब लोगोंको उनके निर्मल हृदयके समान हृदय दे। अपने पाठकोंसे हमारा अनुरोध है कि इन सच्चे पितामहका सच्चा स्मरण इसीमें है कि हम उनके देश-प्रेमका अनुकरण करें। ट्रान्सवालके भारतीयोंको याद रखना चाहिए कि अमर दादाभाईने हमारे लिए जो टेक रखी है वैसी ही टेक हम भी रखें। हम मानते हैं कि उस दिन सभी भारतीय संघ सभा करके बधाईके तार भेजेंगे। हम प्रत्येक जयन्तीपर दादाभाईका चित्र प्रकाशित करना चाहते हैं। इसलिए अगले सप्ताह, अर्थात् जयन्ती बीतने के बाद, पहली बार हम चित्र छापेंगे। आशा है सभी लोग उसे मढ़वा कर रखेंगे।
इंडियन ओपिनियन, ३१-८-१९०७
- ↑ देखिए खण्ड २, पृष्ठ ३८५-६।