समाजको भी कलंकित करेंगे। वे यह सिद्ध कर देंगे कि भारतीय समाजकी लड़ाई कानूनके विरुद्ध नहीं, बल्कि नगण्य संशोधनोंके लिए थी। उपर्युक्त पत्र में यह भी बताया गया है कि कुछ शरारती लोगोंको छोड़कर शेष भारतीय पंजीयन करवानेको छटपटा रहे हैं। यह कितना हास्यास्पद है।
इसके अलावा भारतीयोंकी ओरसे उपर्युक्त पत्र यदि जनरल स्मट्सके पास भेजा गया तो उससे प्रवासी कानून के सम्बन्ध में जो अर्जी दी गई है उसे भी धक्का लगेगा, दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिकी लड़ाई बेकार हो जायेगी, और भारतीय कौमको दिन दहाड़े लूट लिया जायेगा। इसलिए हमारी खास तौरसे प्रार्थना है कि जिसे या जिस कौमको पंजीयन करवाना हो वह अथवा वह कौम खुशीसे कराये किन्तु अपने साथ दूसरेको न घसीटे। किन्तु कुछ मेमन, या कोंकणी या थोड़े बहुत हिन्दू या सूरती या पारसी नाक कटाते हैं तो उसके लिए सारे मेमन, या कोंकणी या हिन्दू क्यों नाक कटायेंगे? क्या मेमनोंमें कोई ऐसा शूर नहीं जो हिम्मतसे कह सके कि "और मेमन जायें तो जायें, मैं तो नहीं जाऊँगा?" कोंकणी भी ऐसा ही क्यों नहीं कह सकते? क्या भारतीय बुरे काममें दूसरोंकी होड़ करेंगे? किन्तु भेड़के समान हम अब भी एक-एक करके खाई में गिरनेको तैयार हों तो निश्चित मानिये कि गुलामीका कानून हमारे सिरपर मढ़ा हुआ ही है।
इंडियन ओपिनियन, ३१-८-१९०७
१५९. लेडीस्मिथके परवाने
लेडीस्मिथके जिन भारतीयोंको परवाने नहीं मिले, उनपर फिर बादल छाये हैं। वे लोग बिना परवानेके व्यापार कर रहे हैं, इसलिए व्यापार संघने उनपर मुकदमा चलाने की सिफारिश की है और श्री लैबिस्टरने उत्तर दिया है कि वे लोग अगर अब भी रोजगार करते रहेंगे तो उनपर मुकदमा चलाया जायेगा। कांग्रेसके नेताओं को इस प्रकारका आश्वासन दिया गया था कि जो लोग बिना परवाने के व्यापार करेंगे उन्हें रोका नहीं जायेगा। यह वचन न्याय-बुद्धिसे दिया गया था। अब गोरे जोर लगा रहे हैं इसलिए न्यायबुद्धि दब गई है और सरकार जोरके सामने झुककर दूकानें बन्द करना चाहती है। भारतीयोंपर कैसी मुसीबतें आनेवाली हैं उसका हूबह दृश्य इसमें दिखाई दे रहा है। इन बादलोंको हटाने के तीन रास्ते हैं।
(१) शाही न्याय परिषद-(प्रीवी कौंसिल) में अपील की जाये।
(२) अगर वह अपील न की जा सके तो कांग्रेसके मुखिया बड़ी सरकारसे मुलाकात करें। यह उपाय पहले उपायके साथ-साथ किया जा सकता है।
(३) हिम्मतके साथ दूकानें खुली रखी जायें। मुकदमा चलनेपर जुर्माना न देकर माल कुर्क करने दिया जाये।
पहला उपाय तभी किया जा सकता है जब कांग्रेसके पास १,००० पौंड जमा हो जायें। दूसरा उपाय तो करना ही चाहिए। उससे हमेशा के लिए समस्या सुलझ जायेगी, सो बात नहीं। तीसरा उपाय सबसे सरल और अच्छा है। किन्तु उसे करना मर्दोका काम है। वह किसीके सिखाने-पढ़ाने से नहीं आता। अपनेमें जोश चाहिए। वह हो तो सब कुछ हो सकता है। इस