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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/२३५

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"हजरत मुहम्मद पैगम्बरका जीवन-वृत्तान्त" क्यों बन्द हुआ?

कानूनमें जेल नहीं है। केवल जुर्माना किया जा सकता है और जुर्माना न देनेपर वह माल कुर्क करके वसूल किया जा सकता है। हमारी विशेष सलाह है कि भारतीय लोग यह मार्ग स्वीकार करें। डॉक्टर रदरफोर्ड जैसे यह करते हैं और हम भी यही कर सकते हैं। किन्तु ऐसे काम में दूसरेकी दी हुई हिम्मत बेकार है। मनके अन्दरसे प्रेरणा होनी चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३१-८-१९०७

१६०. "हजरत मुहम्मद पैगम्बरका जीवन-वृत्तान्त" क्यों बन्द हुआ?

इस प्रश्नका उत्तर देते हुए हमें खेद होता है। भारतीय समाज और खासकर मुस्लिम भाइयोंकी सेवा करनेके लिए अत्यन्त शुद्ध बुद्धि एवं प्रेमसे हमने इस अनुवादका प्रकाशन शुरू किया था। गोरों द्वारा लिखे गये जीवन-चरित्रों में वॉशिंगटन इरविंग द्वारा लिखित यह जीवन-चरित्र बहुत ही अच्छा माना जाता है। उन्होंने कुल मिलाकर मुहम्मद साहबकी खूबियाँ बताई हैं। मुसलमान धर्मकी अच्छी बातें अच्छी तरह पेश की है। ऐसा हो या न हो, हम मानते हैं कि गोरे मुसलमान धर्मके बारे में अथवा उसकी स्थापना करनेवालेके बारेमें क्या लिखते हैं इसे जानना प्रत्येक मुसलमानका कर्तव्य है। इस अनुवादको प्रकाशित करने में हमारा उद्देश्य अपने उसी कर्तव्यका निर्वाह करना था। किन्तु पाँचवें प्रकरण में दिये गये मुहम्मद साहबकी शादीके विवरणसे हमारे कुछ पाठकोंको ठेस लगी, और उन्होंने हमें सूचना दी कि हमें उस वृत्तान्तका प्रकाशन बन्द कर देना चाहिए। हमें यथासम्भव यही सिद्ध कर दिखाना है कि यह अखबार समाजका है। हमें किसी भी प्रकार, बिना जरूरतके किसीको चोट नहीं पहुँचाना है। इस लिए हमने 'जीवनचरित्र'[] देना बन्द कर दिया है और उसके लिए हमें खेद है, क्योंकि एक तो उसके अनुवादमें बहुत मेहनतकी गई थी, और दूसरे अब हमारे पाठकोंको इरविंगकी सुन्दर पुस्तकको समझने का अवसर नहीं मिलेगा। इसके अलावा, ऐसी खबरें भी पहुँच रही हैं बहुत लोग इसलिए नाराज हो गये हैं कि हमने जीवन चरित्र देना बन्द कर दिया है। ऐसे लोगोंसे हम इतना ही कह सकते हैं कि यदि उन्हें उसका अनुवाद चाहिए तो हमें लिख भेजें।

  1. गांधीजी के सेक्रेटरी महादेव देसाईने अपनी डायरी में जुलाई २९, १९३२ को लिखा है: बापूने…अपने दक्षिण आफ्रिकाके अनुभव बताये। उन्होंने वॉशिंगटन इरविंगकी पुस्तक लाइफ़ ऑफ़ द प्रॉफ़ेट (पैगम्बरका जीवन-वृत्तान्त) पढ़ी थी और इंडियन ओपिनियन के मुसलमान पाठकोंके लिए उसका सरल अनुवाद भी प्रकाशित करना शुरू किया था। लेकिन मुश्किलसे एकाध अध्याय ही छापा गया था कि मुसलमानोंने इस प्रकाशनका जोरोंसे विरोध करना शुरू कर दिया। इन अध्यायों में सिर्फ मूर्तिपूजा, अन्धविश्वास और उन बुरे रीतिरिवाजोंके विषय में लिखा गया था, जो पैगम्बरके जन्मसे पूर्व अरबमें प्रचलित थे। परन्तु मुसलमान इसको भी सहन नहीं कर सके। बापूने यह समझाने का प्रयत्न किया कि ये अध्याय तो उन भारी बुराइयोंकी प्रस्तावना मात्रके हैं, जिनसे लड़ने और जिन्हें दूर करने के लिए पैगम्बरने जन्म लिया था। पर किसीने न सुनी। मुसलमानोंका कहना था "हमें पैगम्बरका ऐसा कोई जीवन-वृत्तान्त नहीं चाहिए।" बादके जो अध्याय लिखे जा चुके थे और कंपोज़ भी हो चुके थे, उनका प्रकाशन रोक देना पड़ा। (महादेव देसाईकी डायरी (अंग्रेजी संस्करण), नवजीवन प्रकाशन, अहमदाबाद १९५३, देखिए खण्ड १ पृष्ठ २५९)। "पैगम्बर मुहम्मद और उनके खलीफा", पृष्ठ ५४-५५ भी देखिए।