यदि बहुत पाठकोंकी इच्छा हुई तो जब हमारे छापाखानेको सुविधा होगी तब हम स्वतन्त्र पुस्तक प्रकाशित करके उन प्रेमियोंकी आशा पूर्ण करने का प्रयत्न करेंगे।
इंडियन ओपिनियन, ३१-८-१९०७
१६१. केप टाउनके भारतीय
ब्रिटिश भारतीय लीगकी अर्जी हम गत सप्ताह दे चुके हैं। उसमें बहुतसी महत्वपूर्ण माँगोंका समावेश हो जाता है। हम लीगको बधाई देते हैं। हमें आशा है कि लीग इस कामके पीछे यथासम्भव शक्ति लगाकर परिणाम अच्छा लायेगी। केपके भारतीयोंको अधिकार प्राप्त करने और उनको सँभालनेके जितने अवसर हैं उतने औरोंके पास नहीं हैं। हमें यह भी आशा है कि मेफीकिंग तथा ईस्ट लन्दनके भारतीय लीग और संघसे मिलजुलकर काम करेंगे और सब मिलकर एक बड़ी निधि इकट्ठा कर लेंगे।
इंडियन ओपिनियन, ३१-८-१९०७
१६२. बहादुरी किसे कहा जाये?
समाचारपत्रोंमें खबर है कि मूर लोगोंने, जो मुसलमान हैं, कासाब्लेंकामें बहुत ही बहादुरी दिखाई है।
अपने लड़ाईके नारे लगाते हुए मूर भालेवाले फ्रेंच गोली और तोपवालोंपर छलांगे भरकर चढ़ बैठे। उनपर छर्रों, गोलियों और बमोंके टुकड़ोंकी वर्षा हो रही थी, किन्तु उन्होंने परवाह नहीं की। बहुत लोग घायल होकर गिर गये; फिर भी जितने बचे वे आगे बढ़ते गये और तोपोंके मुँह तक पहुँच गये। उसके बाद लौटे।
पाठक पूछेंगे कि तोपके मुँहसे वापस कैसे लौटा जा सकता था? बहादुरीकी यही खूबी है।
उन्होंने इतना जोश दिखाया कि फ्रेंच तोपचियोंको उन बहादुर लोगोंपर तोप चलानेकी हिम्मत नहीं हुई। उन्होंने उनका स्वागत किया और 'हुर्रे' का नारा लगाकर शाबाशी देनेके लिए तालियाँ बजाई। बादमें बहादुर सिपाही सलाम करके वापस लौटे।
ऐसे बहादुरोंका अनुकरण सारी दुनिया कर सकती है। उनके गीत सब गा सकते हैं। किन्तु हमारे मुसलमान पाठकोंको इससे खास तौरसे सबक लेना चाहिए। यदि इन मूर लोगोंकी, जो जंगली माने जाते हैं, बहादुरीका सौवाँ हिस्सा भी हम ट्रान्सवालके भारतीयों में होगा तो हम निश्चय जीतेंगे। इसमें मरना नहीं है, न मारना ही है। धनका त्याग करना है।
इंडियन ओपिनियन, ३१-८-१९०७