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सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय

दिवालियेपनके दगेकी सजा

इस्माइल ईसा नामक एक दिवालिया कर्जदारपर फरेबका इल्जाम था। उसका मुकदमा श्री डी'विलियर्सकी अदालत में प्रिटोरियामें चला था। उसपर इल्जाम था कि दिवाला निकलनेवाला है इस बातको जानते हुए भी उसने अर्नेस्ट एबर्टकी पेढ़ीसे तम्बाकू खरीदी थी। इसपर उसे तीन माहकी सजा हुई है। यह मुकदमा भारतीयोंके लिए लज्जाजनक है। हममें इतनी टेक रहनी चाहिए कि हमारे यहाँ एक भी दिवालिया न हो। किन्तु इसमें तो दिवालियापनके साथ ही जालसाजी भी दिखाई दी। ऐसे कामोंसे भारतीयोंको बिलकुल दूर रहना चाहिए।

रस्टनबर्गका पत्र

रस्टनबर्ग के समाजने जो विजय प्राप्तकी, उसके बारेमें संघके नाम एक पत्र आया है। उसमें लिखा है कि कैप्टन चैमने भारतीयोंको समझाने गये थे। किन्तु सबने दृढ़तापूर्वक यही जवाब दिया कि पंजीयन नहीं करवाना है। श्री चैमने भी गये थे, किन्तु उन्हें भी यही जवाव मिला। वहाँ श्री बापू देसाई, श्री रहीम भाई, श्री बखारिया, श्री मढ़ी और श्री एम॰ ई॰ काजी स्वयंसेवक थे। दूकानें आधे दिन बन्द रखी गई थीं। श्री डी'सोजा नामके पुर्तगीज भारतीय के पास श्री कोड़ी गये थे। किन्तु पुर्तगीज भाईने पंजीयन करवाने से साफ इनकार कर दिया।

फोक्सरस्ट तथा वॉकरस्ट्रूमके पत्र

फोक्सरस्ट तथा वॉकरस्ट्रूमसे पत्र आये हैं। उनमें वहाँके नेताओंने लिखा है कि एक भी भारतीय अनुमतिपत्र नहीं लेगी। सभीमें बहुत जोश है।

विशेष अपमान

जोहानिसबर्ग नगरपालिकामें अब यह हलचल हो रही है कि भारतीय, चीनी या दूसरे काले लोगोंको पहले दर्जेकी घोड़ा-गाड़ीमें न बैठने दिया जाये। संघने इस सूचनाके विरोध में पत्र[१] लिखा है। किन्तु इस समय ऐसा होनेकी कम सम्भावना है। नगाड़ा केवल पंजीयन कानूनका बज रहा है। उसमेंसे अन्तमें जो आवाज निकलेगी उसीपर सब दारोमदार है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३१-८-१९०७
  1. देखिए "पत्र: जोहानिसबर्ग नगरपालिकाको", पृष्ठ १९९।