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१६७. भाषण: कांग्रेसकी सभा[१]

डर्बन
सितम्बर ४, १९०७

हमने जो लड़ाई शुरू की है वह बहुत ही भारी है, इसलिए उसका परिणाम भी वैसा ही होगा। यदि जीत गये तो भारतीयोंकी स्थिति ट्रान्सवालमें ही क्या, नेटाल, केप, और भारतमें भी बहुत कुछ सुधर सकेगी। और यदि हमने मुँह फेरा तो उसका परिणाम भी उतना ही खराब होगा। नेटालमें श्री हैगर जैसा व्यक्ति संसदमें ट्रान्सवालके पंजीयन कानून जैसा कानून बनानेकी बात उठाये, केपमें फेरीवाले तथा दूकानदारोंको परवानोंकी तकलीफ हो, डेलागोआ-बेमें नये-नये कानून व प्रतिबन्ध लगाये जायें, रोडेशियामें भी भारतीयोंके लिए विशेष कानून बनाये जायें, और जर्मन [पूर्व] आफ्रिकामें भी भारतीयोंकी प्रतिष्ठा गिरानेका विचार हो—यह सब, यदि हम अपना पानी बतानेको तैयार हों, तो रुक सकता है। ट्रान्सवालमें जो करना उचित है, वह हो रहा है। लन्दनकी समिति भी तेजीसे काम कर रही है। नेटालने भी कुछ मदद दी है। ३१ जुलाईको प्रिटोरिया में जो तार आये और उसके बाद हर प्रसंगपर दूसरे गाँवों में मण्डलों और व्यापारियोंको अलग-अलग तार भेजे गये, उनका प्रभाव बहुत अच्छा हुआ है। उसके लिए मैं और ट्रान्सवालके भारतीय आपका आभार मानते हैं। मुझे मालूम है कि यहाँसे समितिने १०० पौंड विलायत भेजे हैं। यह ठीक किया है। लेकिन नेटालको इसके बाद भी अभी बहुत करना है। यहाँसे अभी बहुत-सा चन्दा इकट्ठा किया जा सकता है। यहाँ मैं यह नहीं कहता कि इसी तरह दूसरे गाँवोंसे धन एकत्र करके ट्रान्सवाल भेज दें, बल्कि मेरा कहना है कि उसे एकत्र करके जमा रखें, जिससे जरूरतके समय उसका उपयोग किया जा सके। ट्रान्सवालके लोग भी चन्दा एकत्र करके अपना हिस्सा देते हैं। ब्रिटिश भारतीय संघ इस लड़ाईमें लगभग १५०० पौंड खर्च कर चुका है, और अब भी बहुत खर्च करना है। उसके पास आज केवल १०० पौंडके करीब ही हैं। ऐसी गरीब स्थितिमें लोग मुझसे बार-बार पूछा करते हैं कि संघ जेल जाने वालोंके बाल-बच्चोंका भरण-पोषण किस प्रकार कर सकेगा? इस सबका मेरे पास एक ही उत्तर है, और वह है कि हम सब खुदापर भरोसा रखनेवाले हैं, फिर यह सवाल क्यों उठायेंगे कि अपने पत्नी-बच्चोंका क्या होगा। इतनेपर भी हमें अपने कर्तव्यका पालन करना चाहिए। घर-घर और गाँव-गाँव जाकर चन्दा इकट्ठा करना चाहिए। लोगोंको स्थितिसे परिचित कराना चाहिए। इससे वे खुशी-खुशी चन्दा देंगे, और उन्हें इसकी जानकारी भी हो जायेगी कि नये कानूनसे हमारी कितनी अधम स्थिति होनेवाली है। मतलब यह कि हमें कुछ भी उठा नहीं रखना है। तभी हम खुदापर पूरा भरोसा रख सकते हैं। हमें जितना भी करना है वह करना चाहिए और उसीके साथ हर प्रसंगपर खुदाकी इबादत करके अन्त:करणसे माँगना चाहिए कि "हे खुदा! हे ईश्वर! हमारी न्यायकी अर्जीकी यदि यहाँ कहीं सुनवाई नहीं होती तो हमें तेरा तो पूरा भरोसा है। तेरे दरबारमें किसी भी काममें जरा

  1. यह 'और स्पष्टीकरण' शीर्षकसे छापा गया था।