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१७२. अनाक्रामक प्रतिरोधके लाभ
एक स्मरणीय उदाहरण

आजकल आयर्लैंडवासी अपने हक प्राप्त करनेके लिए बहुत बेचैन हो रहे हैं। वहाँ के कुछ नेता मानते हैं कि जैसे भारतीयों में चमड़ीके रंगका दोष है वैसे ही आयर्लैंडकी जनतामें भूमिका दोष है। इसलिए भारतीय प्रजा भारतमें और भारतके बाहर दुःख उठाती है और अंग्रेजोंसे हलके दर्जेको गिनी जाती है। आयर्लैंडवासियोंकी अपने देश में तो कोई गिनती नहीं है, क्योंकि अंग्रेज शासक उनपर जुल्म करते हैं; लेकिन जैसे ही वे अपना देश छोड़कर बाहर जाते हैं, अंग्रेजोंके समान ही अधिकार भोगने लगते हैं। लोकसभामें आयलैंडके ८६ सदस्य हैं। फिर भी अंग्रेज लोग अपने स्वार्थमें अन्धे होकर इतना जोर दिखाते हैं कि आयरिश प्रतिनिधियोंको कामयाबी नहीं मिलती। इसलिए आयर्लैंडके कुछ नेता सुनवाईका दूसरा रास्ता अख्तियार करना चाहते हैं। उसका नाम 'सिन-फेन'[१] है। इसका यदि गुजराती में हूबहू अर्थ किया जाये तो उसे 'हमारा स्वदेशी आन्दोलन' कहा जा सकता है। "सिन-फेन" दलका जोर दिनोंदिन बढ़ रहा है। उसने अपने आन्दोलनमें शान्तिपूर्ण प्रतिरोध या अनाक्रामक प्रतिरोधको मुख्य हथियार बनाया था। आजतक वे लोग मार-काटकी प्रवृत्तिको प्रोत्साहन देते थे। आयलैंडकी जनता किरायेदार है और मालिक अंग्रेज यानी परदेशी हैं। इसलिए किरायेदार प्रजा परदेशी मालिकको मारने-पीटनेकी तरकीब करती थी। किन्तु अब यह निर्णय किया गया है कि लोगोंको ऐसी तालीम दी जाये जिससे धीरे-धीरे ब्रिटिश लोकसभासे आयरिश सदस्य निकाल लिये जायें, आयर्लैंडकी अदालतों में आयरिश लोगोंके मुकदमे न जायें और असुविधाएँ होनेपर भी ब्रिटिश मालका उपयोग न किया जाये। इन्हीं उपायोंके साथ स्वदेशीका आन्दोलन चलाया जाये, जिससे बिना युद्धके विवश होकर अंग्रेज या तो आयर्लैंडको स्वायत्त शासन दे दें या फिर आयर्लैंड छोड़कर चले जायें और आयरिश प्रजा स्वतन्त्र राज्य करने लगे।

इस आन्दोलनकी बुनियाद यूरोपके दक्षिण आस्ट्रिया-हंगरीमें पड़ी थी। आस्ट्रिया और हंगरी दो अलग-अलग देश थे। लेकिन हंगरी आस्ट्रियाके अधिकारमें था, जिससे उसे सदा ही आस्ट्रियाका शिकार बनना पड़ता था। इसलिए डिक नामक एक हंगेरियनने आस्ट्रियाको तंग करनेके लिए लोगोंमें यह विचार फैलाया कि आस्ट्रियाको कर न दिये जायें, आस्ट्रियाके अधिकारियोंके यहाँ नौकरी न की जाये और आस्ट्रियाका नाम तक भुला दिया जाये। यद्यपि हंगेरियन बहुत ही निर्बल थे फिर भी इस बलके कारण अन्तमें आस्ट्रियाको उनके साथ न्याय करना पड़ा और अब हंगरी आस्ट्रियाके अधिकारमें नहीं माना जाता। वह अब आस्ट्रियाके मुकाबलेका राज्य है।

इन उदाहरणोंसे ट्रान्सवालवासियोंको बहुत सबक लेना चाहिए। इससे स्पष्ट होता है कि इतिहासमें जो बातें पहले की जा चुकी हैं, वही भारतीयोंके सम्बन्धमें ट्रान्सवालमें की जानी

  1. आयरिश भाषाके इस शब्दका अर्थ है 'हम ही'; यह नाम १९०५ में प्रारम्भ हुए उस आन्दोलनको दिया गया था, जो बाद में एक सार्वजनिक गणतन्त्रीय दलके रूप में विकसित हुआ और जिसके प्रयासोंसे आयरिश फ्री स्टेटकी स्थापना हुई।