चाहिए। मतलब यह कि हजारों लोगोंको कोई कैद नहीं कर सकता, न निकाल सकता है। लेकिन कैद भोगते या देशके बाहर निकाले जानेके लिए प्रत्येक भारतीयको तैयार रहना चाहिए। भारतीय जेल भोगने और देशके बाहर जानेको तैयार हैं, यह साबित करनेके लिए उनमें से कुछको जेल भोगनी पड़ेगी और देशके बाहर भी जाना पड़ेगा। जिसके हिस्से देश-निकाला अथवा जेल आयेगी, विजय उसी भारतीयकी हुई, जिन्दगी उसीने जी, ऐसा माना जायेगा। उसका नाम अमर होगा और उसने अपने देशके प्रति शत-प्रतिशत कर्तव्य निर्वाह किया, यह माना जायेगा।
इंडियन ओपिनियन, ७-९-१९०७
१७३. प्रधानमन्त्रीके विचार
सर हेनरी कैम्बेल बैनरमेनने श्री रिचको उत्तर भेजा है कि वे दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिके शिष्टमण्डलसे नहीं मिलेंगे। उनके दिये हुए उत्तरका सारांश रायटरने तारसे भेजा है। इस तारके अनुसार प्रधानमन्त्रीने सूचित किया है कि वे ट्रान्सवाल सरकारको लिख चुके हैं कि नया कानून खराब है। किन्तु चूँकि अब ट्रान्सवाल स्वतन्त्र है इसलिए वे उस अधिनियमको लागू करने के सम्बन्ध में हस्तक्षेप नहीं कर सकते और तत्काल ट्रान्सवालपर अधिक दबाव भी नहीं डाल सकते। इस उत्तरके लिए, जान पड़ता है, सर हेनरीने लगभग बीस दिन लिये हैं। इसका अर्थ हम यह लगाते हैं कि ट्रान्सवालसे बड़ी सरकार के पास कोई सूचना गई है कि भारतीय समाज आखिरमें बिना जबरदस्तीके पंजीयन करवा लेगा। हम मानते हैं कि इसी तरह लिखने में जनरल स्मट्सको इस बातसे बल मिला है कि कुछ लोगोंने पंजीयन करा लिया है और दूसरे करानेको तैयार हैं। यदि हमारा अनुभव सही हो तो सर हेनरीके उत्तरसे निराश होनेका कोई कारण नहीं रहता। सर हेनरोके हस्तक्षेपका समय तब आयेगा जब हमारी सच्ची लड़ाई शुरू होगी, जब भारतीय जेलमें जाने अथवा निर्वासित होनेपर भी दृढ़ रहेंगे और कानूनके सामने नहीं झुकेंगे। सर हेनरी अगर ऐसे समय में भी हस्तक्षेप नहीं करते तो हम समझते हैं कि ब्रिटिश राज्यका सूर्य अस्त हो गया है। क्योंकि निर्दोष मनुष्योंपर अत्याचार हो और बड़ी सरकार उन्हें न बचाये तो साधारण बुद्धि कहती है कि ईश्वर उसके हाथ से सत्ता छीन लेगा। जो रक्षा न करे उसे राजा कैसे कहा जाये?
किन्तु सर हेनरी हस्तक्षेप करें या न करें, भारतीयोंकी लड़ाईका सम्बन्ध इससे ज्यादा नहीं है। इस बारकी लड़ाई आत्मबलकी लड़ाई है। जिस कानूनको हम इस समय हेय कर रहे हैं उसे बड़ी सरकारकी निर्बलता देखकर स्वीकार नहीं कर लेंगे। यदि असली समयपर बड़ी सरकार हाथपर-हाथ धरे हमारी होली होती देखती रहती है तो उस हालतमें उपनिवेश में भारतीय अपने बलपर ही रह सकते हैं, और यदि कैद आदिकी उपेक्षा करेंगे तो वे उपनिवेशसे तबाह होकर बुरी मौत मरेंगे, क्योंकि कुत्ते की तरह जीनेको हम मौतकी अपेक्षा हेय समझते हैं।