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नेटाल नगरपालिका मताधिकार अधिनियम


सर हेनरीके पत्रपर विलायतके सुप्रसिद्ध 'पाल माल गज़ट'ने आलोचना की है कि सर हेनरीने भारतीयोंके अधिकार डुबाने में कायरता और कमीनापन दिखाया है और इस कायरताका परिणाम बड़ी सरकारको भोगना पड़ेगा। इस प्रकारका तार जोहानिसबर्गके 'संडे टाइम्स' में छपा है। इससे माना जा सकता है कि विलायतमें जो लड़ाई चल रही है उसका अन्त अभी आया नहीं है।

[गुजराती से]
इंडियन ओपिनियन, ७-९-१९०७

१७४. नेटाल नगरपालिका मताधिकार अधिनियम

इस बातको लेकर कि नेटालमें भारतीयोंको नगरपालिकाका मताधिकार मिलेगा या नहीं, बहुत दिनोंसे बहस-मुबाहसा हो रहा है। अन्तिम परिणाम क्या होगा, इसका अभीतक निर्णय नहीं हो सका अब समाचारपत्रों में जो खबर छपी है, उससे मालूम होता है कि लॉर्ड एलगिनने उक्त अधिनियम अस्वीकृत कर दिया है। कारण यह दिया गया है कि परवानोंकी बाबत नेटालकी सरकार साम्राज्य सरकारको सन्तुष्ट नहीं कर सकी। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह उत्तम निर्णय दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिके अस्तित्व और उसके द्वारा चलाये गये जबरदस्त संघर्षका परिणाम है। हमारे पाठकोंको याद होगा कि कई बार श्री रिचने उक्त समितिकी ओरसे लॉर्ड एलगिनके नाम इस विधेयकको लेकर पत्र लिखे हैं। इस जीत में कुछ खास खुश होने जैसी बात नहीं है। हम स्वयं नगरपालिकाओंके अधिकारकी प्राप्तिको महत्त्व नहीं देते। यदि हममें उस अधिकारको काममें लानेका ज्ञान या शक्ति न हो, तो बहुधा वह एक बोझ ही हो जाता है। कानूनकी दृष्टिसे गोरों और गेहुए लोगोंको समान हक होनेपर भी उन दोनोंमें जो लोग अधिक उत्साही, शिक्षित, चतुर और परोपकारी बुद्धि रखनेवाले हैं, वही आगे बढ़ सकते हैं, ऐसा हम आज अमेरिकामें देख सकते हैं, और उसी तरह केप उपनिवेशमें भी। केपमें भारतीय, वतनी और गोरे, तीनोंको एक जैसा मताधिकार है, फिर भी भारतीय समाज दिनपर-दिन पिछड़ता जा रहा है। मतरूपी बन्दूकपर जंग लग गई है और गोरे व्यापारिक परवानोंके विषयमें जैसा चाहें, वैसा कानून बनाते रहते हैं। इसका पहला तात्पर्य हम यह समझते हैं कि भारतीय गरीब हों, चाहे अमीर, उनके मन में मनुष्यताकी तीव्र भावना पैदा होनी चाहिए। अपने समाजमें हकोंको अक्षुण्ण रखनेके लिए उनमें लड़ने अथवा अन्य रीतिसे कष्ट सहन करनेकी हिम्मत और शक्ति आना जरूरी है। इन गुणोंके हमारे बीच उत्पन्न होनेका समय आ गया है अथवा हमें उसकी प्रतीक्षा अभी वर्षों तक करनी पड़ेगी, यह बात ट्रान्सवालके भारतीयोंके कामसे प्रकट हो जायेगी।

[गुजराती से]
इंडियन ओपिनियन, ७-९-१९०७