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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/२५०

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१७५. डॉक्टर नंडीकी पुस्तिका

डॉक्टर नंडीने[] नये कानूनके बारेमें एक पुस्तिका लिखी है। उसका मूल्य एक शिलिंग रखा है। उसमें लॉर्ड सेल्वोर्न, श्री कर्टिस, श्री चैमने, श्री कोडी इत्यादिकी बड़ी निन्दा की गई है, और उसी प्रकार श्री गांधीके विषयमें भी लिखा गया है। उस सारी आलोचनाका सारांश यहाँ देना जरूरी नहीं जान पड़ता। उन्होंने इस पुस्तिकामें यह सुझाव दिया है कि नया कानून रद्द करके एक आयोगके द्वारा भारतीय समाजके अधिकारोंकी जाँच करानेके बाद नया पंजीयन कराया जाना चाहिए। इस सुझावमें और स्वेच्छया पंजीयनके प्रस्ताव में कोई अन्तर नहीं है। इस हद तक डॉक्टर नंडीकी पुस्तिका हमारे लिए सहायक हो सकती है। किन्तु इस पुस्तिकाका इतना ही अर्थ है, कानूनको अमलमें रखते हुए सिर्फ पंजीयनपत्रोंको बदलनेकी मांग की गई है, यह ठीक-ठीक स्पष्ट नहीं किया गया। किन्तु इस पुस्तिकाका कोई महत्त्व हमें नहीं दिखाई देता, क्योंकि हमें उसमें कोई नई बात दिखाई नहीं पड़ती। इसके सिवा श्री चैमने, तथा श्री कोडीपर जो हमला किया गया है, उससे उन्हें कोई हानि पहुँचेगी ऐसा भी नहीं जान पड़ता। इस पुस्तिकामें डॉक्टर नंडीने स्वीकार किया है कि जेल जानेका प्रस्ताव ही भारतीय समाजके लिए लाभदायक है। डॉक्टर नंडीने 'रैंड डेली मेल'के आधारपर शिक्षित भारतीयोंको अँगुलियोंके निशान लेने की शर्तसे मुक्त करनेकी सूचना निकलनेकी बात भी की है। किन्तु ऐसी सूचना तो कभी नहीं दी गई; और यदि आगे दी भी जाये तो उससे कानून सम्बन्धी संघर्षका अन्त होनेकी सम्भावना नहीं है। इसके अतिरिक्त अन्य कुछ [सुझाव[]] भी देखने में आते हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-९-१९०७

१७६. कानूनका विरोध–एक कर्तव्य[] [१]

अमेरिकामें बहुत वर्ष पहले हेनरी डेविड थोरो नामक एक महापुरुष हो गये हैं। उनके लेख लाखों मनुष्य पढ़ते व मनन करते हैं तथा कुछ उनका अनुसरण करते हैं। थोरो जो कहते उसपर आचरण भी करते थे, इसलिए उनके लेखों को बहुत महत्त्व दिया जाता है। उन्होंने स्वयं अमेरिकाके विरोध में अर्थात् अपने देशके विरोध में कर्तव्य समझकर बहुत कुछ लिखा है। अमेरिकाके लोग बहुतसे लोगोंको गुलाम बनाकर रखते थे, इसे वे बड़ा पाप मानते थे। परन्तु इतना लिखकर ही वे सन्तोष नहीं कर लेते थे, बल्कि अमरीकी नागरिककी हैसियतसे इस रोजगारको रोकने के लिए जो भी उपाय अख्तियार करना उन्हें योग्य दिखाई देता उसे वे

  1. डॉक्टर एडवर्ड नंडी, देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४६०-६१।
  2. इंडियन ओपिनियनकी जो प्रति उपलब्ध है उसमें गांधीजी द्वारा प्रयुक्त शब्द ठीक पढ़ा नहीं जाता।
  3. इसमें तथा १४-९-१९०७ (पृष्ठ २३१-३३) के दूसरे लेखमें गांधीजीने गुजराती पाठकोंके लिए, हेनरी डेविड थोरोके विचारोंका सरल रूपान्तर प्रस्तुत किया था।