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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भारतीयको लूटनेका आरोप है। भारतीय लुटा, इसमें तो कोई शक नहीं। जिनपर इल्जाम लगाया गया है, उनका निश्चित कहना है कि वे निर्दोष हैं। एक और भारतीय पकड़ा गया है। उसपर नकली सिक्के बनाने का आरोप है। इन घटनाओंसे यह सिद्ध होता है कि हममें से कुछ लोगोंमें चरित्रकी कमी है। ईसप मियाँने समितिमें भाषण देते हुए कहा कि इस तरहकी बातें होनी ही नहीं चाहिए। और दीवानी दावे तथा झगड़े हों तो उन्हें भी वकील या सरकारका खजाना भरे बिना अपने घरमें निबटा लेना चाहिए। मैं मानता हूँ कि इस बातपर बहुत ही सावधानीसे अमल किया जाना चाहिए। इस लड़ाईके परिणामस्वरूप यदि हम हिन्दू-मुसलमानका भेद भूल जायेंगे, आन्तरिक झगड़े खत्म कर देंगे, और यदि हुए भी तो उन्हें घर-ही-घरमें निबटा लेंगे और दूसरे कुकर्म भी छोड़ देंगे, तो तेरह हजार भारतीयोंकी सारे संसारमें तारीफ होगी और उनके नाम खुदाकी बहीमें सदाके लिए दर्ज हो जायेंगे। एक भारतीय सिर्फ बदला लेने के लिए ही दूसरे भारतीयपर दोषारोपण करता है, यह मामूली बात नहीं मानी जा सकती। एक आदमी दूसरेको पीटता है, यह कोई छोटी क्रूरता नहीं है। कोई भी भारतीय शराब पीता है, यह कम बेइज्जतीकी बात नहीं। जरासे प्रयाससे इन बुरी आदतोंको मिटाया जा सकता है। नये कानूनका खात्मा करने के लिए इस गन्दगीको दूर करना भी मैं जरूरी मानता हूँ।

पहले दर्जेकी बग्घी

जोहानिसबर्ग नगरपालिका पहले दर्जेको बग्घीमें भारतीयोंको न बैठने देनेके लिए नियम बना रही है। उसके विरोध में ईसप मियाँने सख्त पत्र[१] लिखा है। उस नियममे अब और यह सुधार (या बिगाड़) किया जानेवाला है कि जो भारतीय वकील या डॉक्टर हो वह उस बग्घीमें बैठ सकता है। क्या इसका मतलब यह हुआ कि भारतीय वकीलको गलेमें पटिया लगाकर पहले दर्जेकी गाड़ीमें बैठने जाना चाहिए? यदि वह ऐसा न करे तो गाड़ीवान उसे किस तरहसे पहचान सकेगा? वकील भले फटेहाल हो, फिर भी वह पहले दर्जेकी बग्घीमें बैठ सकता है, लेकिन अच्छी पोशाकवाला व्यक्ति, यदि वह वकील या डॉक्टर नहीं तो, नहीं बैठ सकता। इस बेहूदे संशोधनके विरोध में श्री ईसप मियाँने दूसरा पत्र[२] लिखकर कहा है कि इस तरहके सुधार करना जलेपर नमक छिड़कनेके समान है। ऐसे संशोधन भारतीय नहीं चाहते। नये पंजीयन लेनेवाले इस कूड़ा प्रस्तावसे चौंक जायेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-९-१९०७
  1. देखिए "पत्र: जोहानिसबर्ग नगरपालिकाको", पृष्ठ १९९।
  2. देखिए "पत्र : जोहानिसबर्ग नगरपालिकाको", पृष्ठ २०९।