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१७९. पत्र:[१] एशियाई पंजीयकको

[जोहानिसबर्ग
सितम्बर ११, १९०७]

[सेवामें

एशियाई पंजीयक]

महोदय,

सर्वश्री मुहम्मद इब्राहीम, बूसा कारा, करावली और ईसा इस्माइलको पिछले महीनेकी २७ तारीखको शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत उपनिवेशसे चले जानेका १४ दिनका नोटिस मिला था। तदनुसार मेरे मुवक्किलोंने इस मासकी २ तारीखको डेलागोआ-बेके तीसरे दर्जेके टिकट खरीद लिए और इस प्रकार नोटिसोंकी शर्तें पूरी करनेकी कार्रवाई की। किन्तु वे कोमाटीपूर्ट में हिरासत में ले लिये गये और पुर्तगाली प्रदेशमें घुसनेसे रोक दिये गये। ट्रान्सवालकी सीमापर जो सार्जेंट था उसने डेलागोआ-बेमें उनका प्रवेश करानेका प्रत्यन किया; उसका कोई फल नहीं निकला। इसके बाद मेरे मुवक्किल कोमाटीपूर्टमें, जैसा वे कहते हैं, पाँच दिन तक जेलमें रखे गये। उसके बाद सार्जेंट उनके लिए डर्बनके टिकट लाया। उनके डर्बन होकर गुजरनेके लिए नौरोहण-पासोंके प्रार्थनापत्र देनेपर उन्हें हुक्म हुआ कि वे ११ पौंड जमा करें और अपना टिकट जोहानिसबर्गमें खरीदें। मेरे मुवक्किल मुझे सूचित करते हैं कि वे बहुत गरीब हैं; इसलिए वे न यह रुपया जमा कर सकते हैं और न जोहानिसबर्गमें अपने टिकट खरीद सकते हैं। उनके रेलवे टिकिट मेरे पास है। यदि आप मुझे कृपा करके यह बता देंगे कि मेरे मुवक्किलोंको अब क्या करना है तो मैं कृतज्ञ हूँगा। वे देशसे जानेके लिए बिलकुल तैयार हैं, बशर्ते कि उनके लिए व्यवस्था की जा सके। मैं नम्रतापूर्वक यह भी जानना चाहता हूँ कि मेरे मुवक्किलोंको कोमाटीपूर्ट जेलमें क्यों रखा गया।[२]

[आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी]

[अंग्रेजीसे]
कलोनियल आफिस रेकर्ड्स: सी॰ ओ॰ २१९/१२१
  1. यह १४-९-१९०७ के इंडियन ओपिनियनमें छपा था। इसकी एक प्रतिलिपि श्री रिचने ७ अक्टूबरको भारत उपमन्त्रीको भेजी थी।
  2. पंजीयकने इसका उत्तर दिया था कि "चूँकि इन लोगोंको कोई ऐसी जगह नहीं मालूम थी जहाँ वे रह सकें", इसलिए उनको पुलिसकी कोठरीके उपयोगकी अनुमति दी गई थी, और पुलिसका यह कार्य बिलकुल भारतीयों के हितमें था। आवश्यक व्यवस्था होनेपर ये लोग बादमें डर्बनको रवाना हो गये; देखिए "जोहानिसबर्ग की चिट्ठी", पृष्ठ २७०।