पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/२६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१८५. कानूनका विरोध—एक कर्तव्य [२]

इस शीर्षकसे थोरोके लेखका कुछ भाग[१] हम दे चुके हैं। शेष निम्न प्रकार है:

समझदार व्यक्ति मर्दकी तरह ही काम करेगा। दूसरेके हाथका खिलौना नहीं बनेगा। अमेरिकाके इस शासनको टिकाये रखनेका जो मनुष्य प्रयत्न करता है उसे नामर्द समझा जाये। जो राज्य गुलामोंपर शासन करता है उसे मैं अपना राज्य नहीं मान सकता। जब बहुत अत्याचार हो तब अत्याचारी राज्यका मुकाबला करना मनुष्य जातिका अधिकार है। कुछ लोगोंका कहना है कि अमेरिकाका वर्तमान शासन उतना अत्याचारी नहीं है। अर्थात् स्वयं उनपर आक्रमण नहीं हो रहा है। और यदि दूसरोंपर हो रहा है, तो ऐसा कहनेवालोंको इस बातकी परवाह नहीं है।

जिस प्रकार प्रत्येक यंत्रमें थोड़ा-बहुत जंग[२] लगा रहता है उसी प्रकार प्रत्येक शासनमें जंग रहता है। उस जंगको दूर करनेके लिए विरोध करने की आवश्यकता भले कभी न पड़े, परन्तु जब जंग ही यंत्र बन जाये, जब जुल्म ही कानूनका रूप ले ले तब वह राज्य मर्दोंको बर्दाश्त नहीं हो सकता।

प्राण देना पड़े तब भी न्याय एवं सत्यका पालन करना चाहिए। मैंने यदि डूबते हुए व्यक्तिसे तूंबा छीन लिया हो, तो मुझे अपनी जान देनी पड़े तब भी वह तूंबा उसे वापस देना चाहिए। उसी प्रकार यदि अमेरिकाका राज्य डूबता हो तब भी गुलामोंको मुक्त किया जाना चाहिए।

हम कहा करते हैं कि किसी काममें सुधार करनेके लिए लोग हमेशा तैयार नहीं होते। परन्तु सुधार करनेमें हमेशा समय लगता है; क्योंकि सुधारक लोग, जो ज्यादा नहीं होते, एकदम बहादुर नहीं बन जाते। इस बातकी चिन्ता नहीं कि आपके जैसे सभी मनुष्य भले नहीं बन सकते। किन्तु समाजमें कुछको तो बिलकुल स्वच्छ होना चाहिए। जिस प्रकार खमीरकी एक बूंद सारी रोटीको खमीर चढ़ा देती है, उसी प्रकार वे अपनी सात्विकता समाजपर चढ़ा देते हैं। ऐसे तो हजारों हैं जो विचारसे गुलामीके विरुद्ध हैं परन्तु व्यवहार बिलकुल उलटा करते हैं। वे सब वॉशिंग्टनके वंशज कहलाते हैं, परन्तु जेबमें हाथ डाले हुए मौज उड़ाते रहते हैं। अधिक किया तो अर्जियाँ और भाषण दे दिया करते हैं।

संसारमें सत्यके पीर—माननेवाले—तो हजारमें नौ सौ निन्यान्वे व्यक्ति होते हैं, आचरण करनेवाला एक ही होता है। किन्तु सत्यको माननेवालेसे सत्यका आचरण करनेवालेका, भले वह एक हो तो भी, मूल्य अधिक होता है। खजानेकी रक्षा करनेवाले बहुतेरे खड़े हों तो भी वे उसमें से एक पाई भी नहीं दे सकते, जबकि मालिक एक ही हो तो वह सारा खजाना लुटा सकता है।

मनुष्य सत्यके पक्षमें मत दे तो वह सत्यका आचरण करनेके बराबर नहीं है। जब बहुत से लोग गुलामी रद करनेके लिए मत दें तब यह समझिये कि गुलामी रद करना

  1. देखिए "कानूनका विरोध—एक कर्तव्य [१]", पृष्ठ २२०-२२।
  2. गांधीजीने 'फ्रिक्शन' (घर्षण) के लिए इस शब्दका प्रयोग किया है। देखिये उद्धरण, "सक्रिय अवज्ञाका धर्म", पृष्ठ २१५।