शेष रहा ही नहीं। उससे यह समझना चाहिए कि रद करनेवाले सच्चे व्यक्ति उसकी नींव पहले ही डाल चुके थे।
मैं यह नहीं कहता कि प्रत्येक मनुष्यको जहाँ कहीं भी झूठ दीख पड़े, उसे दूर करना ही चाहिए। किन्तु इतना मैं निश्चित रूपसे कहता हूँ कि उसे स्वयं तो असत्यमें हाथ बँटाना ही न चाहिए। निश्चय कर लेनेके बाद जबतक मनुष्य-मात्र उसके अनुसार आचरण नहीं करता, तबतक उसमें क्या मजा आयेगा?
यदि कोई मेरा माल चुराकर ले जाता है, तो मैं यह कहकर नहीं बैठा रहता कि यह चोरी हुई सो ठीक नहीं हुआ, बल्कि चुराये गये मालको वापस प्राप्त करने और दुबारा चोरी न हो इसके लिए प्रयत्न करता हूँ। जो मनुष्य अपने कथनके अनुसार आचरण करता है वह और ही प्रकारका बनता है। वह न देशकी परवाह करता है, न सगे-सम्बन्धीकी परवाह करता है, न मित्रोंकी, बल्कि सत्यकी सेवा करते हुए उपर्युक्त सभी लोगोंकी सेवा करता है।
हम स्वीकार करते हैं कि कानून अत्याचारपूर्ण है। क्या हम उसका विरोध करेंगे? साधारणतया लोग कहते हैं कि जब बहुमत उन कानूनोंको नापसन्द करेगा तब वे रद होंगे। उनका कहना है कि यदि वे विरोध करें तो कानूनसे होनेवाली बुराईकी अपेक्षा विरोधसे उत्पन्न बुराई अधिक बुरी होगी। किन्तु वैसा हो तो वह दोष विरोध करनेवालेका नहीं है, अधिकारीका है।
मैं बेखटके कह सकता हूँ कि मैसाच्युसेट्समें गुलामीके विरुद्ध, भले वह एक ही मनुष्य हो, उसे गुलामीको बनाये रखने में कर देकर अथवा और किसी भी तरहसे मदद नहीं करनी चाहिए। दूसरे उसकी राय नहीं अपनाते तबतक उसे खराब काम नहीं करते रहना चाहिए। क्योंकि वह अकेला नहीं है। खुदा सदा उसके साथ है। यदि मैं दूसरोंकी अपेक्षा सच्चा हूँ तो मैं उन सभीकी तुलनामें बढ़कर हूँ। मुझे हर वर्ष एक बार इस राज्यका अनुभव होता है। मेरे पास कर लेनेवाला आता है। उस समय मुझे कर देनेसे इनकार कर ही देना चाहिए।
मैं जानता हूँ कि इस मैसाच्युसेट्स में एक ही सच्चा वीर गुलामीके विरोधके निमित्त कर न देकर जेल जाये तो उसी दिनसे गुलामीकी बेड़ी टूटने लग जायेगी। जो चीज सही तरीकेसे की जाये उसे ही वास्तविक रूपमें सफल माना जायेगा। किन्तु हम तो लम्बी-लम्बी बातें करके माने लेते हैं कि बातें करना ही हमारा काम है। गुलामी समाप्त करनेके आन्दोलनका समर्थन करनेवाले बहुतसे समाचारपत्र हैं, परन्तु उनमें मर्द एक भी नहीं है।
जिस राज्यमें लोगोंको गलत आधारपर जेलमें रखा जाता है उस राज्यमें न्यायी और भले लोगोंका घर जेल है। इसलिए मैसाच्युसेटमें भले मनुष्योंको आज जेलमें होना चाहिए। जिस राज्यमें गुलामीकी प्रथा हो वहाँ मनुष्य जेलमें ही स्वतन्त्र है। वहीं उसकी प्रतिष्ठा है। जो लोग यह मानते हैं कि भले मनुष्य यदि जेल चले जायेंगे तो पीछे अन्यायके विरोध में आन्दोलन करने के लिए कोई नहीं रहेगा, उन्हें पता नहीं है कि आन्दोलन किस प्रकार चलता है, न उन्हें इस बातका हो भान है कि सत्य असत्यसे कितना जोरदार होता है। जेल भोगनेवाले तथा अन्यायके जुल्मका अनुभव करनेवाले जेलमें रहकर जितना काम कर सकेंगे उतना जेलसे बाहर रहकर नहीं कर सकते। विरुद्ध राय रखनेवाले थोड़ेसे लोग जबतक दूसरी रायके बहुजन समाजके साथ घुलते-मिलते रहेंगे तबतक उन्हें विरुद्ध विचारके नहीं कहा जा सकता। उन्हें तो अपनी सारी शक्ति विरुद्ध गति पैदा करने में लगानी चाहिए।