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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/२६४

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पुलिस तैनात की है। इससे महापौर महोदयकी प्रतिष्ठा बढ़ती है। यह भी खबर मिली है कि इंग्लैंडका वैदेशिक विभाग भी उनकी सार-सँभाल करता है।

इस हमलेका अर्थ इतना ही होता है कि भारतीय स्वयं बहादुर होंगे तभी विदेशोंमें निभा सकेंगे। गोरे तो हमेशा लातें मारते ही रहेंगे और उनसे बड़ी या दूसरी कोई सरकार उन्हें बचानेवाली नहीं है। जो भीरु होकर बैठ जायेंगे, उनकी खुदा भी सहायता नहीं करता। हम यदि शेर-चीतोंके बीच बसे तो दो ही बातें हो सकती हैं। सच्ची हिम्मत तो यह कहलायेगी कि उनसे डरा न जाये। शेर-चीतोंको भी भगवानने पैदा किया है। उनकी ओरसे निर्भय वही रह सकते हैं जो सच्चे बहादुर हैं; या फिर जो सच्चे भक्त हैं। सच्चे भक्त अपनी भक्ति द्वारा लम्बे समयमें यह सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। दूसरे वर्गकी हिम्मत है—शेर-चीतोंके सामने हथियार लेकर खड़े होना। उसमें भी शरीरकी जोखिम तो उठानी पड़ती ही है। गोरोंके बीच बसनेवालोंकी स्थिति ऐसी ही है, और आगे भी ऐसी ही रहेगी। जिन लोगोंको इसका भय हो, उन्हें अपने पेटके लिए परदेश नहीं जाना चाहिए। इसका मतलब यह हुआ कि हमें साधारणतः दूसरे वर्गकी हिम्मतकी जरूरत है। श्रीमती एनी बेसेंटकी[] नीतिके अनुसार छोटे-बड़े सभी भारतीयोंको कुश्ती आदि व्यायाम सीखकर शरीरसे स्वस्थ बनना चाहिए। यह तभी हो सकता है जब हमारे मनमें स्वाभिमानकी भावना जागे और हम भी मर्द हैं, इसका भान हो।

पोलकका पत्र

'स्टार' समाचारपत्र में एक अंग्रेजी लिखनेवाले भाईने लिखा है कि भारतीय व्यापारी कुल मिलाकर और दूसरोंकी तुलनामें विश्वसनीय हैं। इसलिए उन्हें गोरे व्यापारी रकम दिया करते हैं। लेकिन इस पत्र लेखकने यह भी कहा है कि चूँकि भारतीय व्यापारियोंके पैसोंका उपयोग ट्रान्सवालमें नहीं होता, इसलिए उन्हें निकालकर बाहर कर देना चाहिए। इसके उत्तरमें श्री पोलकने एक लम्बा पत्र लिखा है। उसमें उन्होंने बताया है कि भारतीयोंको भूमि सम्बन्धी और दूसरे अधिकार नहीं है इसलिए उनके पैसेका ज्यादा उपयोग इस देशमें नहीं होता। उन्होंने इसका उदाहरण दिया है कि पॉचेफ्स्ट्रूमके अग्निकाण्डके समय जो चन्दा एकत्रित किया गया था उसमें मदद देनेके लिए भारतीयोंने क्या कहा था। समूचे भारतीय प्रश्नको उन्होंने अच्छे ढंगसे चर्चा भी की है।

पंजीयन कार्यालय

पंजीयन कार्यालयकी यात्रा होती ही रहती है। दूसरे गाँवोंको अब बधाई देनेकी भी आवश्यकता नहीं रही। सर्वत्र एक ही हलचल चल रही है। सभी लोग अनुमतिपत्र कार्यालयका बहिष्कार कर रहे हैं। यह कदम सही रहा है। इसमें अब ज्यादा हिम्मत करनेकी जरूरत नहीं। जो अन्तिम कसौटीपर खरे उतरेंगे वे बधाईके पात्र होंगे।

अफवाहें

आये दिन तरह-तरहकी अफवाहें उड़ा करती हैं। कोई कहता है मेमनोंने पंजीयनपत्र ले लिये हैं; कोई कहता है कोंकणी कायर हो गये हैं; फिर कोई कहता है कि प्रिटोरियामें

  1. एनी बेसेंट, (१८४७-१९३३) सुप्रसिद्ध थियॉसफिस्ट, १९१७ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी अध्यक्ष; 'रिलीजस प्रॉब्लेम इन इंडिया' (भारतकी धार्मिक समस्या) तथा अन्य पुस्तकोंकी लेखिका।