पहुँचाते और उसका अकारण अपमान नहीं करते। एशियाई पंजीयन अधिनियमके बारेमें ब्रिटिश भारतीयोंको मेरे संघने बेशक यह सलाह दी है कि वे उसके आगे न झुकें, क्योंकि, मेरी नम्र रायमें, उनका प्रथम कर्तव्य यह है कि वे उस उच्चतर धर्मके आगे सिर झुकायें जो मानव-जातिको आत्मसम्मान और सच्चाई तथा गम्भीरतासे की हुई घोषणाओंका आदर करनेका आदेश देता है। पंजीयन अधिनियमको स्वीकार करनेसे, मेरी रायमें, भारतीयोंकी सारी मर्दानगी छिन जाती है और वे नास्तिक बनते हैं; और इस बुनियादी सवालकी ओर आपका ध्यान दिलानेके विचारसे ही १४ तारीखका पत्र आपकी सेवामें भेजा गया था। किसी जिम्मेदार ब्रिटिश भारतीयके लिए अँगुलियोंके निशान देने से बचने के लिए समाजको जीवन-मरणके संघर्ष में उतर पड़ने और समस्त सांसारिक सम्पत्तिका त्याग कर देने की सलाह देना लड़कपन होगा।
मेरे संघको उस धमकीका पूरा पता है, जिसका आपने अपने भाषण में, जो इस पत्रव्यवहारका विषय है, इस्तेमाल करना उचित समझा है और जिसे आपने अपने इस पत्रमें भी दुहराया है। लेकिन मैं यह कहने के लिए क्षमा चाहता हूँ कि उस धमकीका उन लोगोंपर कोई असर नहीं होगा जिन्होंने अपने-आपसे यह सत्य कभी नहीं छिपाया कि सरकार कानून पालन करानेकी शक्ति ही नहीं रखती बल्कि कह भी चुकी है कि वह पालन करायेगी। कानूनका इस तरह अमल कराना उसके लिए श्रेयस्कर होगा अथवा मेरे देशवासी यदि दृढ़ रहें तो अकारण कष्ट सहन करनेके कारण यह सारा श्रेय उन्हींको मिलेगा, यह ऐसा प्रश्न है जिसे भावी सन्ततिके निर्णयके लिए बखूबी छोड़ा जा सकता है।
आपका आज्ञाकारी सेवक,
मो॰ क॰ गांधी
अवैतनिक मन्त्री
ब्रिटिश भारतीय संघ
इंडियन ओपिनियन, २८-९-१९०७