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१९३. नेटालका परवाना कानून

वीनेनमें श्री भायातने परवाना निकायके सम्मुख परवाने के लिए अपील[१] की थी। खेद है कि उसमें वे हार गये। श्री भायातका मुकदमा बड़ा मजबूत था। वे वसीलेवाले व्यापारी हैं। लड़ाईमें उन्होंने सरकारको सहायता दी थी। उनके पास दौलत है। ऐसे व्यक्तिको, यह हो ही नहीं सकता कि किसी भी कानूनके अन्तर्गत, परवाना न मिले।

फिर भी हमें स्वीकार करना चाहिए कि परवाना निकायका निर्णय वर्तमान परिस्थितिको देखते हुए अन्यायी नहीं माना जा सकता। हम लोगोंको इतना याद रखना जरूरी है कि नेटाल अथवा दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय समाज बिलकुल स्वतंत्रतासे व्यापार नहीं कर सकता। परवाना-अधिकारी आसपासके लोगोंकी मनोदशाको और व्यापारियोंकी संख्याको देखकर भारतीय व्यापारीको परवाना दे अथवा न दे, वर्तमान स्थितिमें इसका विरोध करना निरर्थक है। समझदार मनुष्यका काम यह है कि परिस्थितिपर विचार करके कदम उठाये, और अपने आसपास जो घटनाएँ घटें उनका खयाल रखे। भारतीय समाजपर बहुतेरी आफतें टूट रही हैं। उनमें से किसको अधिक महत्व दिया जाये यह पहले ही निश्चित कर लेनेकी बात है। हमारे लिए इस समय मुख्य आवश्यकता प्रतिष्ठा की है। वह मिलेगी, तो और सब आसानीसे मिल जायेगा। प्रतिष्ठाकी रक्षा करते हुए जिन अधिकारोंका इस समय हम उपभोग कर रहे हैं उन्हें हमें बनाये रखना चाहिए। इसलिए इस समय जो परवाने वापस लिए गये हैं उनपर डटे रहें, और अन्य हानि सहन करके एवं जेलमें जाकर भी मौजूदा परवानोंको कायम रखें। यदि भारतीय समाज इतना प्रयास करेगा, तो हमें भरोसा है कि नये परवानोंका मार्ग अपने-आप निकल आयेगा। जबतक हमें कायर समझा जाता है, हमारी निश्चित राय है कि हमारे अन्य प्रयत्नोंका परिणाम कुछ भी नहीं होगा। इसका मतलब यह नहीं कि नये परवाने मिलेंगे ही नहीं। जहाँ परवाना अधिकारी दयालु होंगे, अथवा जहाँ गोरे खिलाफ न होंगे वहाँ निःसन्देह नये परवाने मिलते रहेंगे। इसका अर्थ यह है कि मित्रता या प्रीति वहाँ नहीं हो सकती जहाँ एक पक्ष दूसरेको नीचा समझता है। इसलिए पहला प्रयत्न यह करना होगा कि अपनी प्रतिष्ठाको बनाये रखकर हम सर्द बनें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २१-९-१९०७
  1. देखिए "वीनेन परवानेकी अपील", पृष्ठ २४०।