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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

जायेगा कि हमें वास्तव में कौनसा रोग है? आजतक जिस तापमापक यंत्रसे गर्मी नापी जाती थी उससे गर्मीका ठीक पता नहीं चलता था। जेलरूपी तापमापक लगनेसे सबके तापमानका पता चल जायेगा।

इन सब नामोंको देते और टीका करते हुए मुझे बहुत दुःख होता है। क्योंकि मेरे भाइयोंकी शर्म मेरी शर्म है। मेरे भाई यदि चोरी करते हैं तो उसका कलंक मुझे लगेगा ही। हमारे ही भाइयोंकी गलतीसे हमें सारे दक्षिण आफ्रिकामें कष्ट भोगना पड़ रहा है। कुछ भारतीय गन्दे रहते हैं, उससे सबको दुःख उठाना पड़ता है। कुछ कंजूस हैं, तो उसका दोष भी सबपर आता है। कुछ चोरीसे प्रवेश करते हैं, इसलिए नया कानून बना है, और उसका परिणाम हम सबको भोगना पड़ रहा है। यह अवसर इतना गम्भीर है कि इस समय अपने दोषोंको छिपानेमें पाप है। हममें जो सड़ांध हो वह जब ऊपर आ जायेगी तभी हम ठिकाने लगेंगे। हमारी चाशनी पक रही है। उसमें गन्दगी ऊपर आनी ही चाहिए। यदि गन्दगीको हम दबा देंगे तो उबल जानेके बाद सारी चाशनी बिगड़ जायेगी। इसलिए मेरे नाम प्रकाशित करनेसे यदि किसीको गुस्सा आये तो मैं उसके लिए माफी मांगता हूँ। मुझे अपना यह कर्तव्य तो निभाना ही पड़ेगा।

पीटर्सबर्गके चार साहब गुलामीके पट्टे लेनेको टूट पड़े तो मेफेकिंगके श्री कासिम हाजी तारको लगा कि वे रह गये। अब वे भी पिघल गये हैं। तब फिर डर्बनके लजारस (तमिल) और जोजफ (तमिल) की तो बात ही क्या? ये दोनों तमिल भाई भी पंजीयनका कलंक लगवा चुके हैं।

पंजीयन कार्यालयकी बेचैनी

भारतीय लोग गुलामीका थोड़ा-बहुत दाग लगवा लेते हैं, इसलिए पंजीयन कार्यालय बेचैन हो रहा है। बारबर्टनमें एक भारतीयके पास एक भूतपूर्व अधिकारीका दिया हुआ झूठा अनुमतिपत्र था। उससे वह पकड़ा गया। वह छः महीनेकी जेल काट रहा है। बारबर्टनसे कोरा न जाना पड़े इसलिए उस जेलवासीसे अर्जी ली गई है। हम पूछ सकते हैं कि ऐसे व्यक्तिसे अर्जी लेनेके पीछे क्या हेतु होगा? जिसके पास अनुमतिपत्र नहीं है, जिसे रखनेका हक नहीं है, क्या ऐसे व्यक्तिकी अर्जी लेकर उसका पंजीयन किया जायेगा? या फिर 'ब्लूमफॉटीनके मित्र' ['द फ्रेंड ऑफ ब्लूमफॉटीन' ] के कहे अनुसार सरकार जेलवासी भारतीयोंको ट्रान्सवालमें रखकर, हकदार और पुराने निवासियोंको निकाल देना चाहती है? देखना है कि ट्रान्सवालकी सरकार हकदारके हकोंको कैसे डुबाती है।

अँगुलियोंकी निशानीका नया कानून

इस बारके 'गज़ट' में इस आशयका कानून प्रकाशित किया गया है कि जिस व्यक्तिको जेलमें रखा गया हो, वह यदि गवाही दे या दीवानी मामलेके सिलसिलेमें सजा न भोग रहा हो तो, अधिकारी अपनी मर्जीके मुताबिक उसका फोटो, उसकी अँगुलियोंकी निशानी, और उसका नाम वगैरह ले सकते हैं। इस सम्बन्धमें यहाँके न्यायालयमें इस तरहका एक मुकदमा चल चुका है और उसीपर से यह कानून बनाया गया है। इससे भारतीयोंका विशेष सम्बन्ध नहीं है। लेकिन इससे मालूम होता है कि ऐसा कानून फौजदारी अपराधोंपर लागू किया जा सकता है।