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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/२७९

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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

लगा है। उसमें निम्नलिखित शब्द होते हैं: "श्री गांधीके सिखानेसे, और एशियाइयोंने पंजीयनपत्र नहीं लिये इससे, मैं जुलाई महीने में नये पंजीयनपत्र लेने नहीं आया। क्योंकि मुझे डर लगता था। अब मैं निवेदन करता हूँ कि मुझे पंजीयित कीजिए।" इस प्रकारके कागजपर सही करनेकी किसी भारतीयकी कैसे हिम्मत हुई, समझमें नहीं आता। इससे पंजीयन कार्यालयको क्या फायदा होता है, सो भी मालूम नहीं होता। चाहे जो हो, लेकिन क्या अब वह डर मिट गया है? श्री गांधीकी सीख तो आज भी वैसी ही है, और उनका कहना है कि आखिरी दम तक वैसी ही रहेगी। भारतीय समाजका विचार भी अभी अटल है। लेकिन जिसे गुलामीका पट्टा लेना है उससे दलील किस प्रकार की जाये?

भीमकाय प्रार्थनापत्र

भीमकाय प्रार्थनापत्रकी[] नकल और सूचना इसके साथ भेज रहा हूँ। इसके अनुसार अर्जी तेजीसे तैयार होनी चाहिए, जिससे ऊपर बताये हुए हलफनामे आदि खत्म हो जायें। जिसे सही करनेके लिए अर्जी न मिले वह मन्त्रीसे लिखकर मँगवाले। यहाँ मुझे जो एक उदाहरण याद आ रहा है, वह देता हूँ। सन् १८९४ में जब मताधिकार विधेयक नेटालमें लागू किया गया था तब १०,००० भारतीयोंके हस्ताक्षरयुक्त एक अर्जी लॉर्ड रिपनको भेजी गई थी[] और तब वह विधेयक रद किया गया था। इस बातको याद रखें। दूसरी बात यह कि तब अर्जीपर हस्ताक्षर लेनेके लिए सब बड़े-बड़े लोग निकल पड़े थे, और पन्द्रह दिनमें सारे हस्ताक्षर हो गये थे। किन्तु जब यह मालूम हुआ कि उसकी दो प्रतियाँ चाहिए तो बीस स्वयंसेवकोंने बैठकर रातोंरात नकल तैयार की थी। नेटालकी लड़ाई उस लड़ाईके सामने कुछ नहीं है। इस अर्जी में हस्ताक्षर करवाने के लिए निश्चय ही बहुत समर्थ व्यक्तियों और स्वयंसेवकोंकी जरूरत है। अर्जीपर हस्ताक्षर लेकर ३० के पहले उसे पहुँच जाना चाहिए। मुझे तभी लाभ दिखाई देता है। आशा है कि कमसे-कम १०,००० भारतीयोंके हस्ताक्षर हो जायेंगे।

माननीय प्रोफेसर गोखलेके तारके सम्बन्धमें संघकी बैठक हुई थी। उसमें यह प्रस्ताव भी हुआ था कि अर्जी सब जगह भेजी जाये। श्री कुवाड़िया, श्री कामा, श्री फैन्सी, इमाम अब्दुल कादिर और श्री शाहने अध्यक्ष महोदयके बाद भाषण दिये थे।

एक प्रसिद्ध अंग्रेज बहनका पत्र

नीति सुधारक मण्डलकी एक प्रसिद्ध बहन[] विलायतसे लिखती हैं:

२७ जुलाईका 'इंडियन ओपिनियन' मैंने अभी पढ़ा। अब तो मुझसे आपको सहानुभूतिका पत्र लिखे बिना नहीं रहा जा सकता। जब-जब मैंने अखबार पढ़ा है, मेरा मन भर आया है। मैं आपकी लड़ाईको जबरदस्त और पवित्र मानती हूँ। और जिस ढंगसे आप लिखते, बोलते और चलते हैं उससे मुझे पूरी हमदर्दी है। जिस हिम्मतसे आप लोग वहाँ आन्दोलन कर रहे हैं उसके लिए मैं आपको बधाई देती हूँ।

  1. देखिए "भीमकाय प्रार्थनापत्र", पृष्ठ २३९-४०।
  2. देखिए खण्ड १, पृष्ठ ११७-२८।
  3. फ्लॉरेंस विंटरबॉटम।