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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/२८०

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


छूटे हुए स्वयंसेवक

श्री मुहम्मद इस्माइल कानमिया लिखते हैं कि हमीदिया अंजुमनमें उन्होंने अपना नाम दिया था, लेकिन फिर भी वह 'इंडियन ओपिनियन' में प्रकाशित नहीं हुआ। इससे वे दुःखी हैं। वह नाम क्यों प्रकाशित नहीं हुआ, इसका कारण तो सम्पादक और रिपोर्ट भेजनेवाले भाई जानें। कामकी भीड़में जब सब व्यस्त हों, और ऐसा कोई नाम छूट जाये तो उसे दरगुजर करना चाहिए। लेकिन श्री मुहम्मद इस्माइलको उनके उत्साहके लिए शाबाशी देनी चाहिए। मुझे आशा है कि ऐसा हो जोश दूसरे भी रखेंगे। जोशकी कीमत काम करते समय होगी, इस बातको सभी भारतीय याद रखें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २१-९-१९०७

१९८. पत्र: प्रधानमन्त्रीके सचिवको

जोहानिसबर्ग
सितम्बर २१, १९०७

निजी सचिव

परममाननीय प्रधानमन्त्री
प्रिटोरिया

महोदय,

मेरे संघकी समितिकी यह इच्छा है कि मैं प्रधानमन्त्रीका ध्यान समाचारपत्रोंमें प्रकाशित निम्नलिखित समाचारकी ओर आकर्षित करूँ—

उन्होंने खेद प्रकट किया कि एशियाई अँगुलियोंका निशान देने जैसी तुच्छ बातका बहाना करके पंजीयनका विरोध कर रहे हैं। यह गोरे लोगोंके लिए लागू किया गया था और मैं नहीं समझता कि इस नियमसे किसी को भी कष्ट होगा।

अगर यह रिपोर्ट ठीक है तो मैं परममाननीय महानुभावका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित करनेकी धृष्टता करता हूँ कि पंजीयन अधिनियमके विरोधका मुख्य कारण अँगुलियोंके निशान कभी नहीं रहे हैं। यद्यपि इस अधिनियमके बारेमें बहुतसे एतराजोंमें यह भी निःसन्देह एक गम्भीर बात है; फिर भी मेरा संघ इस बातको खुले दिलसे मंजूर करता है कि अपने-आपमें अकेली यही बात उस बड़े भारी असन्तोषका उचित कारण कदापि नहीं हो सकती, जिसे इस अधिनियमने जन्म दिया है। जिन कारणोंसे आपत्तियों की जाती हैं, उन्हें मैं नीचे उद्धृत कर रहा हूँ:

१. यह महामहिमके प्रतिनिधियोंकी पिछली घोषणाओंके स्पष्ट रूपसे विरुद्ध है।
२. यह ब्रिटिश एशियाइयों तथा अन्य एशियाइयोंके बीच कोई भेद स्वीकार नहीं करता।