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१९९. पत्र: जे॰ ए॰ नेसरको

[जोहानिसबर्ग
सितम्बर १४, १९०७]

[श्री जे॰ ए॰ नेसर, संसद सदस्य

पो॰ ऑ॰ बॉक्स २२
क्लार्क्सडॉर्प]

प्रिय महोदय,

खबर है कि आपने एशियाई अधिनियमके बारेमें नीचे लिखे विचार प्रकट किये हैं:

एशियाइयों के बारेमें यह कानून बहुत जरूरी है। अंगुलियोंके निशान लेनेके बारेमें भारतीयोंके एतराजोंको मैं समझ नहीं सकता; क्योंकि उसमें कुछ भी पतनकारी नहीं है। इसका मैं एक ही कारण समझ सकता हूँ कि भारतीय अपनी बिरादरीके उन लोगोंको बचाना चाहते हैं, जो गैरकानूनी ढंगसे ट्रान्सवालमें आये हैं और अब भी आ रहे हैं।

मेरे संघको खेद है कि आपने एशियाई अधिनियमपर भारतीय समाजके एतराजोंको समझनेका कष्ट नहीं किया। मैं अपने संघकी ओरसे जनरल बोथाको भेजे हुए पत्रकी[१] ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ और यह भी कहना चाहता हूँ कि मेरे संघकी रायमें यह अधिनियम केवल सारी पुरुषोचित भावनाओंको ही चोट नहीं पहुँचाता, बल्कि भारतके महान धर्मोंका अपमान भी करता है। मेरे संघको इस बातपर आश्चर्य है कि आप उस समाजपर, जिसकी नुमाइन्दगी मेरा संघ करता है, यह दोष लगाना उचित समझते हैं कि वह उपनिवेशमें अवैध रीतिसे आनेवाले लोगोंको बचानेकी इच्छा रखता है। मुझे विश्वास है कि आप यह नहीं सोचते होंगे कि ब्रिटिश भारतीय समाज अपराधिरायोंकी रक्षाके लिए वह सब-कुछ बलिदान करनेको तैयार है, जो उसे प्यारा है। इसके अलावा, ब्रिटिश भारतीयोंके स्वेच्छया पंजीयन सिद्धान्तको मान लेनेसे ही जाहिर होता है कि भारतीय समाजके लिए अपराधियोंको बचाना सम्भव नहीं है।

[आपका, आदि,
ईसप इस्माइल मियाँ
अध्यक्ष
ब्रिटिश भारतीय संघ]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-९-१९०७
  1. देखिए पिछला शीर्षक।