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२००. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

[सितम्बर २५, १९०७]

प्लेग-कार्यालयका दौरा

अनुमतिपत्र कार्यालय—मैं भूला, 'प्लेग कार्यालय'—बॉक्सबर्गका चक्कर लगा आया, किन्तु एक कैदीके सिवा और कोई भक्ष्य उसे नहीं मिला। 'लीडर' तथा [रैंड] 'डेली मेल' के संवाददाता लिखते हैं कि वहाँके भारतीयों में बड़ा जोश है। उनके धररनेदार मजबूत हैं और कार्यालयमें जानेवाले भारतीयको समझाते हैं। कुछ भारतीय कार्यालयके खुलनेतक पहुँच भी गये थे। लेकिन, उन्होंने जब देखा कि क्या हाल होंगे तब वे बिना नाक कटाये वापस हो गये। यह पत्र छपेगा, तबतक जर्मिस्टनमें भी कार्यालय पहुँच जायेगा। लेकिन वहाँ भी किसीके जानेकी बिलकुल सम्भावना नहीं है।

हमीदियाकी सभा

जैसे-जैसे दिन गुजरते जा रहे हैं, जोहानिसबर्ग में 'प्लेग' के आने का समय नजदीक आता जा रहा है। इसलिए रविवारको हमीदिया इस्लामिया अंजुमनकी एक जबरदस्त सभा हुई थी। सभाभवन खचाखच भर गया था। इमाम अब्दुल कादिर अध्यक्ष थे। श्री गांधीने बाबू सुरेन्द्रनाथ बनर्जीका[१] तार[२] पढ़कर सुनाया और सारी बातें समझाई। [उन्होंने कहा,] बड़ी अर्जीमें तेजीसे हस्ताक्षर करवाने की जरूरत है। उसके लिए स्वयंसेवक नियुक्त किये जाने चाहिए। पंजीयन कार्यालयके लिए जो स्वयंसेवक नियुक्त किये गये हैं, उन्हें बहुत ही सावधानी और धीरजसे काम करना चाहिए। किसीको डाँटकर कहना या किसीपर हाथ चलाना स्वयंसेवकोंका काम नहीं है। श्री गिब्सनसे श्री ईसप मियाँकी जो बातचीत हुई थी वह उन्होंने सुनाई और कहा कि श्री गिब्सन और दूसरे गोरे जो कुछ भी कहें, उसे हम बिलकुल न मानें। मौलवी साहब अहमद मुख्त्यारने जोशीला भाषण दिया और कुरान शरीफ में आयतें सुनाई, जिनका अर्थ यह है कि ईमानदारको खुदाके दुश्मन या अपने दुश्मनपर एतबार नहीं करना चाहिए। इस समय गोरे दुश्मनका काम कर रहे हैं। इसलिए उनकी पंजीयित होने वगैरहको सलाहपर बिलकुल भरोसा न किया जाये। उन्होंने आगे कहा, हजरत मूसा जैसे पैगम्बरको अपने लगभग एक लाख आदमियोंके साथ बारह वर्ष तक कष्ट भोगना पड़ा था। उसके बाद ही उन्हें सुख मिला। उसी तरह भारतीय कौमको भी कष्ट उठानेके बाद ही सुख मिलेगा। फिर, पैगम्बर मूसाने खुदापर यकीन रखकर ही फीरोजपर चढ़ाई की थी। उसी तरह यह भारतीय कौम भी खुदाके ऊपर यकीन रखकर ही अपनी शपथका निर्वाह कर सकेगी। नाम, इज्जत और ईमानके लिए सारा धन भी खोना पड़े तो क्या हुआ? इसके बाद अध्यक्ष महोदयने कहा कि भारतसे आज प्रोफेसर गोखले, बाबू सुरेन्द्रनाथ बनर्जी जैसे महापुरुष हमें उत्साह-

  1. (१८४८-१९२५), वक्ता और राजनीतिज्ञ, सन् १८९५ और १९०२ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष। देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३९३-९४।
  2. देखिए पृष्ठ २५४ और "तार: सुरेन्द्रनाथ बनर्जीको", पृष्ठ २५६।