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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भरे तार भेज रहे हैं। यदि अन्तिम समयमें हम अपनी बाजी बिगाड़ देंगे तो हमें सारे भारतकी लानत सहनी पड़ेगी। इस सभामें यह भी जाहिर किया गया कि ट्रान्सवालमें रहनेवाली तुर्कीकी मुसलमान प्रजाने अर्जी देनेका इरादा किया है। श्री नवाबखाँने[१] स्वयंसेवकों के सम्बन्ध में भाषण दिया। क्लार्क्सडॉर्पसे श्री पटेल आये थे। उन्होंने कहा कि क्लार्क्सडॉर्पसे हस्ताक्षर आ जायेंगे, इसमें सन्देह नहीं है। श्री अस्वातने कहा, रोजेका महीना अनुमतिपत्रके महीने में ही आ रहा है। इसलिए यह न हो कि मुसलमान एक ओर तो रोजा रखें और दूसरी ओर हाथ-मुँह काले करके ईमान गँवायें। इस बातका ध्यान रखना है।

सरकारकी चिन्ता

सरकार बहुत चिन्ता दिखा रही है कि भारतीय लोग पंजीयित हो जायें। इस बातसे हमें डरना भी चाहिए और हिम्मत भी लेनी चाहिए। डरने जैसी बात यह है कि सरकार जिस बातके लिए इतनी चिन्ता दिखा रही है वह हमें नहीं करनी है। हिम्मत इसलिए कि सरकारकी चिन्ता उसका भय भी व्यक्त करती है। सरकार चाहे कितने ही कठोर दिलकी हो, फिर भी यह नहीं हो सकता कि सारे भारतीयोंको देश-निकाला दे दे या उनके परवाने छीन ले। सरकारने बेलफास्टके मजिस्ट्रेटको जो पत्र भेजा है, उसकी प्रतिलिपि श्री सालूजीने भेजी है। उससे मालूम होता है कि मजिस्ट्रेट हर भारतीयको सूचना देगा कि जो लोग पंजीयित न हुए हों वे जोहानिसबर्ग जाकर अक्तूबर महीनेमें गुलामीका चिट्ठा लेकर आ सकते हैं। इससे ज्यादा भीरुता और किसे कहा जाये?

बोथा साहबकी गलतफहमी

बोथा साहबका कहना है कि अँगुलियोंकी छाप देनेके लिए भारतीय समाज इतना लड़ रहा है, यह तो ठीक नहीं। इससे भी यही मालूम होता है कि यदि भारतीय दृढ़ रहें तो सरकार क्या करेगी, वह स्वयं नहीं जानती। लेकिन फिर भी इस गलतफहमीको दूर करने के लिए श्री ईसप मियांने संघकी ओरसे नीचे लिखा पत्र[२] भेजा है:

बाबू सुरेन्द्रनाथका तार

बाबू सुरेन्द्रनाथ बनर्जीका कलकत्तेसे यह तार आया है:

"बंगालको आपके कष्टों और लड़ाईके प्रति सहानुभूति है और वह आपकी विजय चाहता है।"

इस तारसे बहुत ही हर्ष हो रहा है। बाबू सुरेन्द्रनाथ बनर्जीको बंगाली विद्यार्थी पूजते हैं। आज २५ वर्षसे वे भारतीयोंके लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। वे भारतीय प्रशासन सेवाके लगभग पहले भारतीय सदस्य हैं। वे रिपन कॉलेजके आचार्य और 'बंगाली' नामक प्रसिद्ध पत्रके मालिक हैं। कलकत्तेके ब्रिटिश भारतीय संघके वे कई वर्षोंसे मन्त्री हैं। पूना और अहमदाबादमें जब कांग्रेस अधिवेशन हुआ था तब वे अध्यक्ष थे। भारतमें उनके जैसे भाषण देनेवाले कुछ ही लोग होंगे। उनकी आवाज इतनी बुलन्द है कि दस हजार आदमियोंकी

  1. मूलमें नवाबदाख है।
  2. यहाँ मूलमें "पत्र: प्रधानमन्त्रीके सचिवको", का अनुवाद है, देखिए पृष्ठ २५०-५१।