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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


भूल सुधार

पीटर्सबर्ग के बहादुरोंकी मैंने टीका की है। उसके बारेमें पीटर्सबर्गके एक प्रतिष्ठित सज्जन लिखते हैं कि जिन साहबोंके नाम मैंने दिये हैं उनके हस्ताक्षर पीटर्सवर्गकी प्रसिद्ध अर्जीमें नहीं थे, क्योंकि उस वक्त वे बाहर गये हुए थे। अतः मुझे अपनी गलतीके लिए खेद है। इसके साथ यह भी कह दूं कि जिन साहबोंने अपने हाथ काले किये हैं, उनका अपराध यद्यपि अक्षम्य है, फिर भी वह जितना बड़ा दीखता था उतना नहीं है। उपर्युक्त पत्रका में यह अर्थ करनेकी अनुमति लेता हूँ कि जिन्होंने अर्जीपर हस्ताक्षर कर दिये हैं वे तो इस गुलामीके पट्टेको छुएँगे तक नहीं।

जर्मिस्टनमें युद्ध

जर्मिस्टनमें पंजीयन कार्यालयने काम शुरू किया है। इससे वहाँके भारतीयों में बड़ा जोश है। आज (बुधवार) तक उन्होंने काम-धंधा छोड़ रखा है और सब स्वयंसेवकका काम कर रहे हैं। जर्मिस्टनके एक भी व्यक्तिने अर्जी नहीं दी। होटलके हजूरियोंने भी इनकार कर दिया है। केवल प्रिटोरियाका कासिम नामक एक मद्रासी धरनेदारोंकी बातको न मानते हुए पंजीयित हुआ है। पाँच मेमन आये थे। लेकिन उन्होंने धरनेदारोंकी बात मानकर पिआनो बजाने [अर्थात् पंजीयन करवाने] का अपना विचार छोड़ दिया। जर्मिस्टन में स्वयंसेवकोंको आवश्यकतासे अधिक उत्साह बतलाने के कारण शान्त करना पड़ा था। अब वहाँ सिर्फ उतने ही लोग काम करते हैं जितने जरूरी हैं और सो भी नम्रता और धीरजके साथ।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-९-१९०७

२०१. तार:[१] सुरेन्द्रनाथ बनर्जीको

[जोहानिसबर्ग,
सितम्बर २५, १९०७ के बाद]

भारतीयोंका धन्यवाद। कर्तव्य पूरा करेंगे।

[ब्रिभास]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-९-१९०७
  1. यह सुरेन्द्रनाथ बनर्जीके तारके उत्तरमें दिया गया था, देखिए पृष्ठ २५३-५४।