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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/२८७

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२०२. भारतसे सहायता

ट्रान्सवालवासी भारतीयोंके प्रति उनके जीवन-मरण संघर्ष में सहानुभूति दिखाने में माननीय सुरेन्द्रनाथ बनर्जीने माननीय प्रोफेसर गोखलेका तत्काल अनुकरण किया है। भारतकी जनताके इन विश्वासपात्र प्रतिनिधियोंके समुद्री तार पाना कोई छोटी बात नहीं है। दोनोंने भारतके लिए अपना जीवनोत्सर्ग कर दिया है और दोनोंका भारतमें अनुपम प्रभाव है। इसलिए, यह सोचना उचित ही है कि ट्रान्सवालके भारतीयोंका सवाल भारतीय राजनीतिमें जल्दी ही अत्यन्त प्रमुख स्थान प्राप्त कर लेगा। उस दिन लॉर्ड ऐम्टहिलने ठीक ही कहा था कि भारतीयोंकी भावनाको जितना गहरा आघात दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीयोंके कष्टोंने पहुँचाया है, उतना किसी और चीजने नहीं पहुँचाया। भारतसे जो प्रोत्साहन मिला है उसकी हमें आवश्यकता है। इस सवालपर भारतमें कोई दलबन्दी नहीं है, कोई मतभेद नहीं है। हिन्दू-मुसलमान, पारसी और ईसाई—सब समानरूपसे ट्रान्सवालके भारतीयोंकी अत्यन्त दुःखपूर्ण और अपमानजनक परिस्थितिका अनुभव करते हैं। आंग्ल-भारतीयोंकी राय भी उतनी ही ठोस है जितनी कि भारतीयोंकी। इस व्यवहारके खिलाफ किसीने इतनी सख्तीसे नहीं कहा जितना कि कलकत्तेके 'इंग्लिशमैन' और बम्बईके 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने कहा है। इसलिए आवश्यकता इस बातकी है कि भारतकी तमाम संस्थाओं और लोकमतके मुख्य पत्रोंकी शक्ति केन्द्रित करके लॉर्ड मिंटोपर पूरा जोर डाला जाये; तब भारतीय सवाल न्यायोचित और मानवोचित सिद्धान्तोंके अनुसार हल हुए बिना नहीं रह सकता।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-९-१९०७

२०३. धरनेदारोंका कर्तव्य

जोहानिसबर्ग के भारतीयोंको जल्दी ही अपना जीवट दिखाना होगा। इसमें जरा भी सन्देह नहीं कि एशियाई कानूनके प्रति अन्तिम कदम क्या उठाया जाये। इसका निर्णय बहुत-कुछ इस बातसे होगा कि पंजीयन-दफ्तर द्वारा जोहानिसबर्गके एशियाइयोंको पंजीयित करनेके प्रयत्नका क्या परिणाम निकलता है। ट्रान्सवालकी एशियाई आबादीका प्रायः आधा भाग जोहानिसबर्ग में है। सभी विभन्न एशियाई जातियोंके लोग भी बड़ी संख्या जोहानिसबर्ग में है और अगर वे एशियाई कानूनके विरोधमें दृढ़ रहें तो इससे स्थानीय सरकारको गम्भीरतासे सोचनेके लिए जरूर कुछ मसाला मिल जायेगा। चाहे जितनी धमकियाँ क्यों न दी जायें, पर आजकल जब कि रुपयेकी इतनी तंगी है, जेलकी इमारतें बनाना कोई हँसी-खेल नहीं है। हजारों निर्दोष लोगोंको निर्वासित करना भी व्यावहारिक राजनीति नहीं होगी; क्योंकि इससे बोथा और स्मट्स जैसे जनरलोंकी अन्तरात्मा भी प्रभावित होगी। इस प्रकार, अब हमें एशियाई परवानोंके रद करनेकी धमकियोंका सामना करना पड़ रहा है। लेकिन अगर यह बात सम्भव

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