पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/२९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२०६. हमारा परिशिष्ट

इस बार हम प्रिटोरियाके बहादुर स्वयंसेवकोंकी तस्वीरें दे रहे हैं। कुछ सज्जनोंके विचारकी कद्र करके हमने आजतक यह परिशिष्ट नहीं निकाला था। लेकिन हम मानते हैं कि इससे हमने प्रिटोरियाके स्वयंसेवकोंके साथ अन्याय किया है। हमारी निश्चित राय है कि यदि ये स्वयंसेवक बाहर न निकलते और यदि इन्होंने धीरज, मिठास तथा हिम्मतका आदर्श न खड़ा किया होता तो यह लड़ाई यहाँतक नहीं पहुँच सकती थी।

अब जोहानिसबर्ग की बारी आई है। इस समय इस परिशिष्टको प्रकाशित करना हमने अपना कर्तव्य समझा है। जोहानिसबर्ग यदि इन युवकोंका अनुकरण करेगा, शान्ति और नम्रतासे काम लेगा, तो हम समझ लेंगे कि हमारी लड़ाईका अन्त निकट आ गया है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-९-१९०७

२०७. स्वयंसेवकोंका कर्तव्य

ट्रान्सवालकी लड़ाई में हमने देखा है कि स्वयंसेवकों (बॉलंटियर्स) ने चाहे हम उन्हें स्वयंसेवक, धरनेदार (पिकेट), सेवाव्रती (मिशनरी) या चौकीदार, किसी नामसे पुकारें—बहुत बढ़िया काम किया। उनकी सहायताके बिना कुछ भी हो नहीं सकता था। इस लड़ाईका श्रेय सचमुच प्रिटोरियाके धरनेदारोंको देना चाहिए। उन्होंने धीरज, मधुरता और हिम्मतका जो उदाहरण पेश किया, उसका अनुकरण प्रत्येक स्थानपर होता आ रहा है।

अब जोहानिसबर्ग शेष रहा है। इस शहरमें हर तरहके भारतीय रहते हैं। कोई ऐसे भी होंगे जिन्हें लाज-शरम न हो। ऐसे लोग पंजीयनपत्र लेने जायें तो उसमें आश्चर्य नहीं माना जा सकता। फिर, यह भी हो सकता है कि कोई दूसरे शहरोंसे हाथ-मुँह काले करवाने आ जायें। इन सबको धरनेदार कैसे सँभालेंगे? यदि कोई भारतीय अपने हाथ काले करनेके लिए जायेगा तो साधारणतया हमारे मनमें उसके प्रति तिरस्कार पैदा होगा। परन्तु तिरस्कारके बदले उसपर दया करना हमें अधिक शोभा देगा।

चौकीदारका काम पहरा देनेका है, हमला करनेका नहीं। यदि जोहानिसबर्ग में पंजीयन करवाने के लिए जानेवालोंपर हमला किया गया तो हम निःसंकोच कहते हैं कि किनारे लगी हुई नैया डूब जायेगी। हमारी सारी लड़ाई कष्ट सहन करने की है, किसीको कष्ट देने की नहीं, फिर चाहे वह भारतीय हो या गोरा हो। यह बात प्रत्येक चौकीदारको बहुत सावधानीसे याद रखनी चाहिए। गलती करनेवालोंको समझाना, उनसे बिनती करना, उनकी आजिजी करना हमारा काम है। इसपर भी उन्हें यदि दासता ग्रहण करनी हो तो उन्हें छूट दे देनी चाहिए। क्योंकि यदि हम उन्हें कानूनके अत्याचारसे बचाकर अपने अत्याचारसे दबायें तो उसमें हमें कुछ भी लाभ नहीं दिखाई देता। हम अपने लिए जितनी स्वतन्त्रता चाहते हैं उतनी ही दूसरोंको भी दें, यह हमारा कर्तव्य है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-९-१९०७