२१०. मिस्रमें स्वराज्यका आन्दोलन
'रैंड डेली मेल' के एक पत्रसे मालूम होता है कि मिस्र में स्वराज्यके आन्दोलनने एकदम बड़ा रूप ले लिया है। कहा जाता है कि यह मुस्तफा कामेलपाशाके[१] कामका प्रभाव है। मिस्र संसदके उमराव सदस्योंमें से लगभग ११६ सदस्योंने स्वराज्यके लिए प्रस्ताव किया है। उनका कहना है कि वे अंग्रेजोंकी मदद लेनेसे इनकार नहीं करते। लेकिन राज्यकी लगाम वे अपने ही हाथों में रखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि लोक-शिक्षण विभाग पूरी तरहसे जनताके ही हाथों में होना चाहिए। मुस्तफा कामेलपाशा कहते हैं कि यदि अंग्रेज सरकार इतना अधिकार दोस्तीसे और प्रेमपूर्वक न दे तो मिस्रकी जनता लड़कर ले लेगी, लेकिन अब मिस्र पराधीन नहीं रहेगा।
इंडियन ओपिनियन, २८-९-१९०७
२११. पत्र: जे॰ ए॰ नेसरको
[जोहानिसबर्ग]
सितम्बर २८, ९९०७
पो॰ ऑ॰ बॉक्स २२
आपका इस मासकी २७ तारीखका पत्र प्राप्त हुआ। आपके इस अत्यन्त शिष्ट, स्पष्ट और पूर्ण पत्रके लिए मैं आपको अपने संघकी ओरसे धन्यवाद देता हूँ। भारतीय प्रश्नके ठीक तरहसे हल होनेमें सबसे बड़ी बाधा निःसन्देह यह रही है कि लोक-सेवक उसके प्रति अत्यन्त उदासीन रहे और, इसलिए, उन्हें उसकी जानकारी नहीं है।
आपने मेरे देशवासियोंके प्रति, जिनके हित इस देशमें निहित हैं, जो हमदर्दी जाहिर की है, उसके लिए मैं हृदयसे आभारी हूँ; और चूँकि यह लड़ाई पूरी तरह उन्हीं हितोंकी रक्षाके लिए है, इसलिए मुझे आपके रुखमें एक ऐसी बात दिखाई देती है, जिसपर हम सहमत हो सकते हैं।
मेरा संघ न केवल भारतीयोंके सामूहिक आव्रजनपर की जानेवाली आपकी आपत्तिके साथ सहानुभूति रखता है, वरन् इस प्रकारके आव्रजनके विरुद्ध साधारण विद्वेषको ध्यानमें
- ↑ (१८७४-१९०८); इन्होंने दिसम्बर, १९०७ में मिस्रमें राष्ट्रीय दलकी स्थापना की थी।