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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस कानूनको उन लोगोंपर लागू किया जा सकता है जो अपने-आप पंजीयन न करायें। निःसन्देह, एक निश्चित समयपर सभी भारतीयों या एशियाइयोंकी एक साथ जाँच की जा सकती है, और जिनके पास पहचान के नये प्रमाणपत्र न मिलें उनको शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अधीन उपनिवेशसे निकाला जा सकता है; या शान्ति-रक्षा अध्यादेशके बदलेमें एक आम प्रवासी कानून पास करके उसके अधीन उन्हें निकाला जा सकता है।

मैं आपका समय अधिक न लेते हुए केवल यह कहकर अपने वक्तव्यको समाप्त करूंगा कि जहाँ मेरे देशवासियोंने ईमानदारीसे यूरोपीयों द्वारा उठाये हुए माकूल एतराजोंकी जाँच करके उनको पूरा करनेका प्रयत्न किया है, वहाँ यूरोपीय सामूहिक रूपमें उसका उसी रूपमें उत्तर देने में पूर्णतया असफल रहे हैं और भारतीय स्थितिकी जाँच करनेकी परवाह किये बिना अपनी विद्वेषपूर्ण विरोधी नीतिपर अड़े रहे हैं। चूँकि आप अपने पेशेके कारण ब्रिटिश भारतीयोंसे अत्यधिक सम्बन्धित रहे हैं, इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप अपने-आपको हमारी स्थितिमें रखें और सारी बातोंपर हमारे दृष्टिकोणसे विचार करें और देखें कि क्या थोड़े धैर्य तथा कुछ सहयोगसे एक माकूल समझौता होना सम्भव नहीं है।

आपका आज्ञाकारी सेवक,
ईसप इस्माइल मियाँ
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-९-१९०७

२१२. पत्र:[१] 'रैंड डेली मेल' को

[जर्मिस्टन]
सितम्बर, २८, [१९०७]

सेवामें

सम्पादक
['रैंड डेली मेल'

जोहानिसबर्ग]
महोदय,

आपके संवाददाताने जनताको सूचित किया है कि जर्मिस्टनमें भारतीय धरनेदारोंके डराने-धमकानेसे ही वहाँके बहुतसे भारतीयोंने अपना पंजीयन नहीं कराया। मैं प्रधान धरनेदारकी हैसियत से कहना चाहता हूँ कि आपको दी गई सूचना बिलकुल गलत है। मैं आपको सूचित कर दूं कि वास्तव में दो दिन तक जर्मिस्टनकी तमाम भारतीय आबादी धरना देती रही थी, क्योंकि उन सभी लोगोंने काम बन्द कर दिया था। इस कानूनके विरुद्ध उनका उत्साह और इसके प्रति उनका विरोध ऐसा ही जोरदार था। जब नियुक्त धरनेदारोंने अन्य भारतीयोंको समझाया तभी उन्होंने अपना काम फिर आरम्भ किया।

  1. इसका मसविदा अनुमानतः गांधीजीने तैयार किया था।