पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/२९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६५
भाषण: हमीदिया इस्लामिया अंजुमन में


किन्तु यह बिलकुल सच है कि दूसरे स्थानोंसे कुछ भारतीय जर्मिस्टनमें पंजीयन करानेके लिए आये थे और उन्होंने जर्मिस्टनके धरनेदारोंका मैत्रीपूर्ण विरोध और तर्क सुना और वे अपने आपको और अपने समाजको झुकाये बिना लौट गये। किन्तु जहाँ ऐसा उचित तर्क कारगर नहीं हुआ, वहाँ कड़ी हिदायतें दे दी गई थीं कि जो लोग कानून द्वारा लादी गई दासताको स्वीकार करना चाहें, उनको स्वयं साथ जाकर पहुँचा दिया जाये; और ऐसा बॉक्सबर्ग से आये हुए एक भारतीय जोसफ बहादुरके मामलेमें किया भी गया।

हमारी लड़ाई में हमें डराने-धमकाने की आवश्यकता नहीं होती। जो लोग अधिनियमको और उसके सब परिणामोंको समझते हैं वे अपने-आप इस दासताको स्वीकार करनेसे हाथ खींच लेते हैं; इसमें अपवाद तभी होता है जब वे अपने स्वार्थके कारण अपनी आत्मसम्मानकी भावनाको भुला देते हैं। मैं आपके असंख्य पाठकोंकी जानकारीके लिए बता दूं कि अस्पताली नौकरों और मजदूरों तक ने नौकरीसे बरखास्त कर दिये जानेकी धमकियोंके बावजूद अपना पंजीयन कराने से इनकार कर दिया; और उनके मालिकोंपर उनकी इस सम्मानजनक इनकारीका ऐसा स्पष्ट प्रभाव पड़ा कि उन्होंने उन धमकियोंको वापस ले लिया।

आपका आदि,
रामसुन्दर पण्डित
प्रधान: जर्मिस्टन धरनेदार

[अंग्रेजीसे]
रैंड डेली मेल, ३-१०-१९०७

२१३. भाषण: हमीदिया इस्लामिया अंजुमनमें

जोहानिसबर्ग
[सितम्बर २९, १९०७]

मैं आज अंजुमनकी बैठकमें आया हूँ, किन्तु मुझे कुछ खास नहीं कहना है। श्री बेगका पत्र आया है; अगर जरूरत हो तो वे धरनेदारके रूपमें मदद देनेके लिए तैयार हैं। जर्मिस्टनके भारतीय भाइयोंने जो बहादुरी दिखाई थी, उससे जोहानिसबर्गके भारतीयोंको सबक लेना चाहिए। श्री रामसुन्दर पण्डित उस विषय में बतायेंगे। यहाँके धरनेदारोंको अपना कर्तव्य अच्छी तरह करना चाहिए, जैसे बने वैसे लोगोंको समझाना चाहिए। किसीके साथ जोर-जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए। यदि बाहरके कोई आयें तो उनके साथ धीरजसे काम लिया जाये।

प्रिटोरियाकी अर्जीके बारेमें मुझे अभी इतनी ही खबर मिली है कि सरकार अनुमतिपत्रोंकी जाँचके लिए निरीक्षक रखेगी। श्री कोडीने ट्रान्सवालसे निकाल देनेकी धमकी दी है; पर श्री पण्डित बड़े जोरमें हैं। सरकार यदि इन्हींको गिरफ्तार करे तो अच्छा। जोहानिसबर्ग में हस्ताक्षरोंका काम तेजीसे हो, यह जरूरी है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५-१०-१९०७