पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/२९६

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२१४. प्रार्थनापत्र:[१] तुर्कीके महा वाणिज्य-दूतको

[जोहानिसबर्ग
अक्तूबर ५, १९०७ के पूर्व]

महोदय,

हम निम्न हस्ताक्षरकर्त्ता, जोहानिसबर्गवासी और तुर्कीके महामहिम सुल्तानके वफादार मुसलमान प्रजाजन, इसके द्वारा आपका ध्यान एशियाई पंजीयन-अधिनियमकी ओर आकर्षित करते हैं। इस अधिनियम के अन्तर्गत तुकं साम्राज्यकी मुसलमान प्रजाको पंजीयन कराना पड़ता है। हमारी विनीत सम्मतिमें, यह अधिनियम अपमानजनक है और इससे तुर्कीके मुसलमानोंका विशेष रूपसे तिरस्कार होता है, क्योंकि इससे तुर्क साम्राज्यके मुस्लिम और गैर-मुस्लिम प्रजाजनोंमें भेदभाव किया जाता है, जिससे मुस्लिम प्रजाजनोंकी हानि होती है। इसलिए हम विश्वास करते हैं कि आप कृपा करके स्थानीय सरकारसे आवश्यक निवेदन करेंगे और इस प्रार्थनापत्रकी प्रतिलिपि महामहिम सम्राट् के सम्मुख प्रस्तुत करनेके लिए भेजेंगे।

आपके आज्ञाकारी सेवक,
सैयद मुस्तफा अहमद जैल
[और तुर्कीके १९ अन्य मुसलमान]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५-१०-१९०७

२१५. जॉर्ज गॉडफ्रे

श्री सुमान गॉडफ्रे और श्रीमती गॉडफ्रे अपने तृतीय पुत्रके इंग्लैंडसे उदार सांस्कारिक शिक्षा प्राप्त करके लौटनेपर और भी बधाईके पात्र हैं। अपने दो पुत्रोंको बैरिस्टर और एकको डॉक्टर बनाकर किन्हीं भी माता-पिताको गर्व होगा; फिर उनके दूसरे बच्चे भी अभी स्कूलोंमें पढ़ रहे हैं। श्री जॉर्ज गॉडफ्रे[२] अपनी शिक्षा निर्विघ्न समाप्त करके सकुशल लौट आये हैं और उन्हें अपने मित्रों तथा देशवासियोंका स्वागत-सत्कार प्राप्त हुआ है, अतः वे बखूबी अपने-आपको कृतकार्य मान सकते हैं। परन्तु शिक्षा सम्बन्धी योग्यताओंका महत्त्व बढ़ा-चढ़ाकर बतानेको हमारा जी नहीं चाहता। जनताके लिए यह जानना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि ऐसा भव्य लाभ अपनी शान-शौकत बढ़ाने और धन-संचयके काम आयेगा या राष्ट्रकी सेवामें अर्पण होगा। और इस उपर्युक्त प्रश्न के उत्तरकी अपेक्षा हम श्री गॉडफेके वादोंसे नहीं, उनके जीवनक्रमसे करेंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५-१०-१९०७
  1. सम्भवतः इसका मसविदा गांधीजीने बनाया था। देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ २७०।
  2. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ६।